Book Title: Jain Subodh Ratnavali
Author(s): Hiralal Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad

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Page 217
________________ ( १९७ ) हीरालाल कहे रस वचनको, बुद्धिवंत नर पीजिये. ४ अधिक मात ओर तात, अधिक सुत नार स्नेही । अधिक बंधु परिवार, अधिक सज्जन जन केही ॥ अधिक राजको टाट, पाट पितांमवर गहना । अधिक माल रसाल, अधिक मुख अमृत वयना ॥ अधिक पद भूपत भयो, अधिक रूप रमणी गणो । हीरालाल कहे इस जक्तमें, अधिकधर्म जिनवर तणो. ५ अधिक ज्ञान गुण ध्यान, अधिक तप संजम सूरा । अधिक सील संतोष, अधिक प्राक्रम पूरा ॥ अधिक दया उपदेश, अधिक मुख अमृत वाणी । अधिक कियो उपगार, अधिक जीव यतना जाणी ।। अधिक धिरज धरणी धरा, अधिक तेजदिवाकर जसो। हीरालाल कहे मुनीराजको, अधिकशीतल चंदा असो६ ॥ इति संपूर्णम् ॥

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