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चौदह गणस्थान
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मिथ्यात्व गणस्थान
इस स्थिति में जीव यथार्थ बोध से वंचित रहता है तथा मिथ्यात्व व सम्यक्त्व के मध्य भेद नहीं कर पाता। सत्य-असत्य को न पहचानते हुए वह दिग्भ्रमित व्यक्ति की तरह लक्ष्य से दूर भटकता रहता है। पर पदार्थों में सुख की खोज व सुख की अनुभूति करता है। अज्ञानता के चलते वह आन्तरिक सुख अर्थात् परमानन्द का बोध व विचार नहीं कर पाता है। विवेक शून्यता का प्रभाव उसके आचरण में छा जाता है। बाह्याडम्बरों, कर्मकाण्ड, पशुबलि आदि को धर्म मानना भी मिथ्यात्व है। वासनात्मक एवं आध्यात्मिकता के प्रतिकूल विभिन्न दुष्प्रवृत्तियां इस पर हावी रहती हैं जो उसे नैतिक आचरण व सत्य से वंचित रखती है। जिस प्रकार मोहनीय कर्म के उदय से जीव अपने हित अहित का विचार करने में असमर्थ रहता है वे जीव मिथ्यादृष्टि जीव कहे जाते हैं जैसे- ज्वर से पीड़ित मनुष्य को मधुर रस भी रुचिकर प्रतीत नहीं होता है वैसे ही उन्हें धर्म भी अच्छा मालूम नहीं होता है। गमन की अपेक्षा से
मिथ्यात्व गणस्थानवी जीव यदि अधिक से अधिक ऊपर के गणस्थान में जायेगा तो वह सातवें अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक जा सकता है अर्थात् प्रथम बार में ही वह आधे गुणस्थानों को पार कर जाता है क्योंकि कुल गुणस्थान चौदह ही हैं और उसने प्रथम बार में ही सातवां गुणस्थान प्राप्त कर लिया है। 2- कोई प्रथम गुणस्थानवर्ती द्रव्यलिगी मुनिवर इस मिथ्यात्व गुणस्थान से सीधे विरताविरत गुणस्थान में भी गमन कर सकता है। 3- कोई द्रव्यलिगी श्रावक प्रथम गुणस्थान से शुद्धात्मा के अवलम्बन के बल से सीधे पाँचवे विरताविरत गुणस्थानवर्ती हो जाते हैं। 4- द्रव्यलिगी मुनिराज, द्रव्यलिगी श्रावक अथवा अव्रती मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्व गुणस्थान से अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान में जा सकते हैं। आगमन की अपेक्षा से1- प्रमत्तसंयत गुणस्थानवी भावलिंगी संत भी अनादिकालीन कुसंस्कारों के पुनः प्रकट होने पर विपरीत पुरुषार्थ से निज शुद्धात्मा का अबलम्बन छूटने से तथा निमित्त रूप से यथायोग्य कर्मों का उदय आने से सीधे मिथ्यात्व गुणस्थान में आ सकते हैं। 2- पंचम गुणस्थानवर्ती विरता-विरत श्रावक भी अपने हीन अपराध से तथा उसी समय निमित्त रूप में यथा योग्य कर्मों के उदय से सीधे मिथ्यात्व गुणस्थान में आ जाता है। 3- क्षायिक सम्यक्दृष्टि को अन्य दोनों औपशमिक तथा क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव के जब श्रद्धा में विपरीतता आ जाती है तब उसी समय मिथ्यात्व और अनंतानुबंधी कषाय का उदय आने पर वह जीव सीधे मिथ्यात्व गुणस्थान में आ जाता हैं 4- मिश्र गुणस्थानवर्ती भी मिथ्यात्व गुणस्थान में आ सकता है।