Book Title: Gunasthan ka Adhyayan
Author(s): Deepa Jain
Publisher: Deepa Jain

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Page 61
________________ परिणति के कारण ही वे जीव धार्मिक बने रहते हैं। छठवे गुणस्थानवर्ती शुभोपयोगी मुनिराज के भी शुद्ध परिणति नियम से रहती है इस शुद्ध परिणति के कारण ही यथायोग्य कर्मों का संवर और पूर्व बद्ध कर्मों की निर्जरा भी निरन्तर बनी रहती है। 4. चौथे- अविरत सम्यक्त्व गुणस्थान में मिथ्यात्व और अनंतानुबंधी कषाय चौकडी के अनुदय रूप अभाव पूर्वक व्यक्त वीतरागता से जघन्य शुद्ध परिणति सतत बनी रहती है इसी कारण युद्धादि अशुभोपयोग में संलग्न श्रावक को भी यथायोग्य संवर निर्जरा होती है। 5. पाँचवे देशविरत गुणस्थान में अनंतानुबंधी और अप्रत्याख्यानावरण इन दो कषाय चौकडी के अनुदय रूप अभाव व्यक्त विशेष वीतरागता के कारण मध्यम सुद्ध परिणति सतत बनी रहती है इसलिए दुकान- मकानादि अथवा घर के सदस्यों की व्यवस्था रूप अशुभोपयोग के समय विताते हुए व्रती श्रावक को भी यथायोग्य संवर- निर्जरा होते हैं। 6. छठवें प्रमत्तविरत गुणस्थान में अनंतानुबंधी आदि तीन कषाय चौकडी के अनुदय रूप अभाव से व्यक्त वीतरागता के कारण उत्पन्न शुद्ध परिणति शुभोपयोग के साथ सदा बनी रहती है इसी कारण अप्रमत्तविरत मुनिराज के समान ही प्रमत्तविरत मुनिराज भी भावलिंगी संत नही हैं। 7. सातवें अप्रमत्तविरत गुणस्थान से लेकर नवमे अनिवृत्तिकरण गुणस्थान पर्यन्त के सभी भावलिंगी मुनिराजों को तीन कषाय चौकडी (यथासंभव संज्वलन कषाय एवं नौकषाय) के अनुदय एवं अभाव से व्यक्त वीतरागता रूप शुद्धोपयोग सदा बना रहता है जब तक साधक को शुभ या अशुभ रूप उपयोग रहता है तब व्यक्त शुद्धता लब्धरूप रहती है उसे ही शुद्ध परिणति कहते हैं। जब उपयोग निज शुद्धात्मा में लीन हो जाता है तब वही व्यक्त शुद्धता वीतरागता वृद्धिगत हो जाती है उसे शुद्धोपयोग कहते हैं। व्यापार रूप शुद्धता शुद्धोपयोग कहलाता है और लब्ध रूप शुद्धता शुद्धपरिणति कहलाती है। 8. दसवें सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में तीन कषाय चौकडी और संज्वलन, क्रोध, मान, माया कषायों एवं नौ कषायों के उपशम या क्षय रूप अभाव से उत्पन्न वीतरागता संज्वलन सूक्ष्म लोभ कषाय कर्म के उदय काल में एक अन्तर्मुहुर्त पर्यन्त शुद्धोपयोग रूप रहती है। 9. ग्यारहवें उपशान्तमोह गुणस्थान को छोड़कर आगे के क्षीण मोह आदि तीन गुणस्थानों में एवं सिद्ध अवस्था में भी वीतरागता की पूर्णता हो पायी है अतः इन स्थानों में भी उपयोग एवं परिणति ऐसा भेद नहीं रहता ( मुनि भूमिका की शद्धपरिणति विषयक स्पष्टीकरण होता है।)

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