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भव्य जीवों के प्रकार
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णो सद्दहंति सोक्खं सुहेसु परमंति विगद घाणीदं । सुणिदूम ते अभव्वा भव्वा वा तं पडिंच्छति । 162।।
आसन्न भव्य निकट भव्य
जिन पूजा स्तुति में शुद्धोपयोग से शान्ति का अनुभव करता है।
दूरभव्य- कालान्तर में अनेक भव धारण करके मोक्षगामी है। जिसे जिन पूजाकरने से शान्ति का अनुभव नहीं होता है।
दूरान दूर भव्य या अभव्य समान कभी मोक्ष नहीं होगा जो बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक जिनवाणी आदि का श्रवण करने पर भी निजात्म शान्ति का अनुभव नहीं करता उसे भव्य ही मानना चाहिए।
नित्य निगोद- जो अभी निगोद से निकला नहीं है।
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(12) सम्यक्त्व मार्गणा
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जो कुछ भव धारण करके या तद्भव मोक्षगामी है जो
मइसुइनाणावरणं दंसणमोहं च तदुवघाईणि ।
तप्फगाई दुविहाई सव्वदेसेवघाईणि ।। 76 ।। जीवसमास छप्पचं णव विहाणं, अत्थाणं जिणवरोवइद्वाणं ।
आणा अहिमेण व सद्दहणं होई सम्मत्तं ।। 212|| धवला
मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण दर्शनमोनी ये तीनों सम्यक्दर्शन के उपघातक हैं। इसके स्पर्धक हो प्रकार के हैं- देशघाती तथा सर्वघाती जिनेन्द्र देव द्वारा उपदिष्ट 6 द्रव्य 5 अस्तिकाय और नव पदार्थों की आज्ञा अथवा अधिगम से श्रद्धान करने को सम्यक्त्व कहते हैं। उपशम, वेदक या क्षयोपशमिक तथा क्षायिक ये सम्यक्त्व के भेद हैं। उदाहरण- जिस प्रकार माटीयुक्त पानी से भरे ग्लास में मिट्टी के बैठ जाने पर जल निर्मल दिखता है ठीक उसी प्रकार दर्शन मोहनीय के उपशान्त होने पर जो सत्यार्थ सिद्दान्त होता है उसे उपशम सम्यक्दर्शन कहते हैं। इनके दो भेद हैं-प्रथमोपशम सम्यक्त्व व द्वितीयोपशम सम्यक्त्व 4 अनन्तानुबन्धी कषाय मिथ्यात्व और सम्यग् मिथ्यात्व के क्षय को क्षयोपशम सम्यक्त्व कहा जाता है। क्षयोपशम सम्यकदृष्टि जीव शिथिल श्रद्धानी होता है इसे भटकने में देर नहीं लगती। दर्शन मोहनीय कर्म के सर्वथा क्षय हो जाने पर जो निर्मल श्रद्धान होता है वह क्षायिक सम्यक्त्व है यह नित्य है और कर्मों के क्षय का कारण है। क्षायिक सम्यकदृष्टियों का व कृत्कृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि का त्रियंच गति में जाने पर अन्य गुणस्थानों में संक्रमण नहीं होता। सातवीं पृथ्वी के सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि नारकी जीव अपने-अपने गुणस्थान सहित नरक से नहीं निकलते आयु क्षीण होने के प्रथम समय में ही सासादन गुणस्थान का विनाश हो जाता है। विधान यह भी है कि चारों गतियों के जीव मिथ्यात्व गुणस्थान में आयु कर्म का बन्ध करते हैं इसलिए उस गुणस्थान सहित अन्य गतियों में जाते हैं। सातवीं पृथ्वी को छोड़कर अन्य सब गतियों के जीव सासादन गुणस्थान में आयु बंध करते हैं और इन गतियों से निकलते भी हैं यहाँ नरकायु नहीं बधती । देशविरत
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