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सम्यग्दर्शन के 5 लक्षण- (कसौटी परक पैमाना )
1. कृपा- दूसरे जीवों के दुःखों को दूर करने की इच्छा कृपा या अनुकंपा कहलाती है किन्तु यह पक्षपात या स्वार्थ रहित हो। यह अनुकंपा दो प्रकार की होती है
(अ) द्रव्य अनुकंपा किसी प्राणी के शारीरिक कष्टों को देखकर द्रवित हो जाना तथा उन्हें यथा शक्ति दूर करने का प्रयास करना ।
(ब) भाव अनुकंपा प्राणियों को सांसारिक भ्रमण जाल में डूबा या फँसा व धर्माभिमुख
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देखकर तात्विक अनुकंपा करना ।
2- प्रथम अनन्तानुबन्धी तीव्र कषाय का निमित्त होने पर भी उसे विपाक द्वारा असफल नाना। क्रोध न करना प्रथम है।
3- संवेग- मोक्ष सुख की तीव्र अभिलाषा सम्यक्त्व संवेग है। संसार में रहते हुए भी मन तो मोक्ष की चाहना में लगा हो।
3- निर्वेद बन्धन रूप संसार से वैराग्य होना निर्वेद है। सम्यग्दृष्टि आत्मा अविरति के उदय से भले ही संसार त्याग न कर सके किन्तु उसकी अंतरंग इच्छा तो संसार त्याग की ही होती है।
5- अस्तिकाय- आत्मादि के अस्तित्व एवं जिन वचनों में श्रद्धान अस्तिकाय या आस्तिकता है। "
अत्थिअ 1- णिच्चो 2- कुणइ 3- कयंच वेसइ अत्थि णिव्वाणं । अत्थिअ मुक्कखोवाओ छ
छस्सम्मकस्स ठाणा । "
सम्यग्दर्शन के अन्य भेद
(अ). औपशमिक सम्यक्त्व यथाप्रवृत्तिकरण के द्वारा ग्रंथि देश की प्राप्ति (मोहादि कर्मों के उदय होने पर उनसे बचकर भाग जाना)
(ब). क्षयोपशम सम्यक्त्व - यथा प्रवृत्तिकरण से ग्रंथि देश की प्राप्ति के बाद आत्मा अपूर्व करण के द्वारा राग-द्वेष का भेदन करता है तथा उदय में न आये हुए मिथ्यात्व दलकों का क्षय व उपशम करके क्षयोपशम सम्यक्त्व ग्रहण करता है।
(स). क्षायिक सम्यक्त्व जब आत्मा समस्त कषाय चतुष्क और तीन दर्शन मोहनीय ( समकित मिश्र, मिथ्यात्व ) का सम्पूर्ण क्षय कर देती है तब क्षायिक सम्यक्त्व (चौथे, पाँचवें, छठे और सातवें में ये ) प्रकट होता है जो कभी नष्ट नहीं होता है। ऐसा आत्मा उसी भव से मोक्षगामी होता है यदि उसने आगामी आयुष्य का बंध न किया हो।
5. देशविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान
आध्यात्मिक विकास यात्रा का यह पाँचवा गुणस्थान नैतिक आचरण अवस्था की प्रथम सीडी है। देशविरत गुणस्थान में साधक यथाशक्ति सम्यक् कर्तव्य पथ पर चलना आरम्भ कर देता है। देशविरत का आशय है- सांसारिक वस्तुओं के उपभोग में मर्यादाओं का पालन, विवेकपूर्ण तरीके से आवश्यकतानुरूप व मितव्ययतापूर्वक साधन-संसाधनों का ममत्व रहित उपयोग करते हुए साधना में रत रहना। अन्य शब्दों में वासनामय जीवन से आंशिक निवृत्ति की
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