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4. वैक्रिय समुद्रघातवैक्रिय शक्तिवाला जीव अपने शरीर में से आत्म प्रदेशों को बाहर निकालकर अपने शरीर के पोले भाग को आत्म प्रदेशों से भरता है। अन्तर्मुहुर्त तक इस प्रकार रहकर वैक्रिय शरीर नाम कर्म के बहुत से दलिकों का नाश करता है।
5. तैजस समुद्रघात तेजो लेश्या की शक्तिवाला जीव, वैक्रीय समुद्रघात की तरह स्वशरीर प्रमाण मोटा- चौडा बनता है और दण्डाकृति बनाते हुए अन्तर्मुहुर्त काल में तेजस शरीर नाम कर्म के बहुत से से दलिकों का नाश करता है।
6. आहारक समुद्रघात आहारक लब्धिवाले चौदह पूर्वघर महर्षि आहारक शरीर बनाते है। वे अपने शरीर में से आत्म प्रदेशों को बाहर निकालकर शरीर प्रमाण मोटा चौडा करते है और अन्तर्मुहुर्त काल में बहुत से आहारक शरीर नाम कर्म दलिकों का नाश करते हैं।
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केवली समुद्रघात- वेदनीय नाम और गोत्र कर्म की स्थिति आयुष्य कर्म से अधिक हो तब केवली भगवंत उस स्थिति को समान करने के लिए अपने आत्म प्रदेशों को शरीर से बाहर निकालने के लिए अपने आत्म प्रदेशो को शरीर से बाहर निकालकर चौदह राज लोक
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में व्यापकर उन कर्मों की स्थिति का जो ह्रास करते हैं वह केवली समुद्रघात है। समुदघात के समयः यह समुद्घात 8 समय में पूरा किया जाता है। पहले 4 समय में व्याप । कराने एवं अंतिम 4 समय में खिंचाव किया जाता है
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1. पहला समय सर्व प्रथम आत्मा आत्म प्रदेशों को शरीर से बाहर निकालकर अपने शरीर
की मोटाई के अनुसार दंडाकार रूप में चौदह राज लोक में व्याप्त हो जाती है।
2. दूसरा समय दूसरे समय में जाता है।
आत्मा प्रदेशों को पूर्व आत्मा प्रदेशों को पूर्व - पश्चिम कपाट की रचना में ढाला
3. तीसरा समय - इस समय में शेष रही दो दिशाओं में आत्म प्रदेशों को लोक पर्यन्त फैला दिया जाता है।
4. चौथा समय- चौथे समय में लोक का जो भाग बाकी रह गया है वहाँ आत्मा प्रदेशों को फैला दिया जाता है। इस प्रकार आत्मा चौदह राज लोक व्यापी बन जाती है।
अब विपरीत क्रिया होती है........
5. पाँचवा समय- चौथे समय में अवशेष भागों को जिन आत्म प्रदेशों से भरा था वहाँ से आत्म प्रदेशों को आत्मा से खींच लिया जाता है।
6. छट्ठा समय इसमें दो दिशाओं के आत्म प्रदेशों को पुनः खींच लिया जाता है और आत्म प्रदेश कपाटाकार रह जाते हैं।
7. सातवाँ समय- इसमें कपाटाकार आत्म प्रदेशों का भी संहरण कर दिया जाता है और प्रदेश दण्डाकार शेष रह जाता है।
8. आठवाँ समय इस समय में दण्डाकार आत्मा प्रदेशों का भी संहरण कर दिया जाता है और आत्मा अपने शरीर व्यापी बन जाती हैं।
नोट - ( 1. छः मास से अधिक आयुष्य वाली आत्मा यदि केवज्ञान प्राप्त करती है तो निश्चय से समुद्रघात करती है। शेष केवली विकल्प से करते भी हैं/नहीं करते) समुद्रघात करते हैं।
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