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क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, और सिद्धत्व के अतिरिक्त औपशमिक आदि भावों का अभाव होने से मोक्ष प्रकट होता है। 14 वें गुणस्थान की भी यही विशेषता है। तत्त्वार्थ सूत्र में सिद्धत्व की विशिष्टताओं के आधार पर मुक्त जीव में भेद किए गये हैं मुक्त जीव में भेद के कारण निम्न लिखित सूत्र द्वारा स्पष्ट किए गए हैंक्षेत्रकालगतिलिंगतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधितज्ञानवगाहान्तरसंख्याल्पबहुत्वतः साध्याः।। 9।।
क्षेत्र- विभिन्न कर्म भूमियों(भरत, ऐरावत और विदेह क्षेत्र) से सिद्ध हो सकते हैं। काल- अवसर्पिणी व उत्सर्पणी कालों में भी सिद्ध होते हैं। गति- कोई सिद्ध गति से तथा कोई मनुष्य गति से सिद्ध हो सकते हैं। लिंग- भाव भेद का उदय नवम् गुणस्थान तक ही रहता है अतः मोक्ष अवेद अवस्था में ही होता है अर्थात् भावलिंग की अपेक्षा तीनों लिंगों से ही मोक्ष हो सकते हैं अथवा द्रव्य पुल्लिंग
से।
तीर्थ- कोई तीर्थंकर के साथ तथा कोई बिना तीर्थंकर के सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार कोई तीर्थंकर काल में तथा कोई तीर्थंकरों के मोक्ष जाने के पश्चात(आम्नाय) से सिद्ध होते हैं। चारित्र- सामान्यतया एक चारित्र किन्तु भूतपूर्व नय की अपेक्षा से तीन चारित्र से सिद्ध होते
बुद्धबोधित- कोई संसार से स्वयं विरत होते हैं तथा कोई किसी के उपदेश से। ज्ञान- कोई एक ज्ञान से तथा कोई भूतपूर्व नय की अपेक्षा से दो तीन और चार ज्ञान से सिद्ध होते हैं। अवगाहना-कोई उत्कृष्ट अवगाहना (पाँच सौ धनुष), कोई मध्यम अवगाहना तथा कोई जघन्य(साढ़े तीन हाथ से कुछ कम) अवगाहना से सिद्ध होते हैं। अन्तर- एक सिद्ध से दूसरे सिद्ध के मध्य का समय अन्तर कहलाता है जो जघन्य से एक समय तथा उत्कृष्ट से आठ समय है जबकि विरह काल जघन्य से एक समय तथा उत्कृष्ट से छ माह का है। संख्या- जघन्य से एक समय में एक ही जीव सिद्ध होता है और उत्कृष्टता से 108 जीव सिद्ध हो सकते हैं। अल्पबहुत्व- समुद्र आदि जल क्षेत्रों से थोड़े सिद्ध होते हैं और विदेह क्षेत्रों से अधिक। यह कल्पना बाह्य भेद की अपेक्षा से है जबकि आत्मीय गुणों की दृष्टि से कोई भेद नहीं होता। उपसंहार
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