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(3) काय मार्गणा
पढविदगअगिणमारुय साहारणकाइया चउद्धा उ।
पत्तेय तसा दुविहा चोद्दस तस सेसिया मिच्छा।।26।। जीवसमास वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायकाय, और वनस्पतिकाय इन पाँच स्थावर काय में मिथ्यात्व गुणस्थान पाया जाता है। त्रसकाय जावों में 14 गुणस्थानों की संभावना रहती है। (अ) पृथ्वी-इसके भेदों को निम्नवत् रूप से समझा जा सकता है- पृथ्वीकाय - जिससे जीव
निकल गया, पृथ्वीकायिक - जिसमें जीव विद्यमान हो तथा पृथ्वीजीव- जो जीव
विग्रह गति से आता है और पृथ्वी में उत्पन्न होता है। (आ) जल- जलकाय- जिससे जीव निकल गया. जलकयिक- जिसमें जीव विदयमान हो.
जलजीव- विग्रह गति से आकर जल में उत्पन्न होना। इसी प्रकार अग्नि और वाय
का विश्लेषण है। (4) योग मर्गणा
सच्चे मीसे मोसे असच्चमोसे मणे य वाया य।
ओरालियवेड आहारयमिस्सकम्मइए।।55|| जीवसमास मन वचन काय के निमित्त या जीव प्रदेशों के संयोग से आत्मा के जो वीर्य विशेष उत्पन्न होता है उसे योग कहा जाता है। तीन योग में 13 गुणस्थान होते हैं अयोगी केवली गुणस्थान में योग अभाव होता है। योग के 15 भेद हैं। मन योग- सत्य मनोयोग, असत्य मनोयोग, सत्यमृषा मनोयोग तथा असत्यमृषा मनोयोग (4) ये मन योग के भेद हैं। वचन योग- सत्य वचन, असत्य वचन,सत्यमृषा वचनयोग, असत्यमृषा वचनयोग(4), ये वचन योग के भेद हैं। काय योग- औदारिक शरीर,औदारीक मिश्रशरीर, वैक्रियशरीर, वैक्रिय मिश्रशरीर तथा तैजसकर्माण शरीर काययोग (7) ये काय योग के भेद हैं। इस प्रकार योग के कुल = 15 हैं। उपर्युक्त 15 में से सत्य मनोयोग, सत्य वचन योग, असत्य-अमृषा मनोयोग और असत्य-अमृषा वचन योग ये 4 मिथ्यादृष्टि से सयोग केवली तक के हो सकते हैं तथा शेष 4 असत्य मनोयोग, असत्य वचन योग, सत्यासत्य या मिश्र मनोयोग एवं मिश्र वचनयोग संज्ञी प्राणी में मिथ्यादृष्टि से क्षीणमोह गणस्थान तक संभव है। असंज्ञी विकलेन्द्रिय जीवों के मात्र असत्य-अमषा रूप अंतिम मनोयोग एवं वचन योग ही होता है। छठवें गुणस्थान में जब साधु आहारक शरीर को उत्पन्न होता है उस समय आयु शेष रहने से या मरण होने से उसका औदारिक शरीर से सर्वदा सम्बन्ध नहीं छूट जाता | धवला गाथा 164-165 में स्पष्ट किया गया है छठवें गुणस्थानवर्ती मुनि अपने को संदेह होने पर जिस शरीर के द्वारा केवली के पास जाकर सूक्ष्म पदार्थों का आहारण करता है, उसे आहारक शरीर या आहारक योग कहते हैं जो नाम कर्म से उत्पन्न होता है। इनके शरीरक्रम में गुणस्थानक भेदाभेद निम्न रूप से किये गये हैं