________________
• स्वयम्भूस्तोत्र उन स्तुत्योंका यह स्तोत्र 'स्वयम्भूस्तोत्र' इस सार्थक संज्ञाको भी प्राप्त है । इसी दृष्टिसे चतुर्विंशति-जिनकी स्तुतिरूप एक दूसरा स्तोत्र भी जो 'स्वयम्भू' शब्दसे प्रारम्भ न होकर 'येन स्वयं बोधमयेन' जैसे शब्दोंसे प्रारंभ होता है 'स्वयम्भूस्तोत्र' कहलाता है। • ग्रन्थकी अनेक प्रतियोंमें इस ग्रन्थका दूसरा नाम 'समन्तभद्रस्तोत्र' भी पाया जाता है। अकेले जैन-सिद्धान्त-भवन आगमें ऐसी कई प्रतियाँ हैं. दूसर भी शास्त्रभंडारोंमें ऐसी प्रतियाँ पाई जाती हैं । जिस समय सूचियों परसे 'समन्तभद्रस्तोत्र' यह नाम मेरे सामने आया तो मुझे उसी वक्त यह खयाल उत्पन्न हुआ कि यह गालबन समन्तभद्रकी स्तुतिमें लिखा गया कोई ग्रन्थ है
और इसलिये उसे देखनेकी इच्छा तीव्र हो उठी। मँगानेके लिये लिखा पढी करने पर मालूम हुआ कि यह समन्तभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र ही है-दूसरा कोई-ग्रन्थ नहीं. और इसलिये 'समन्तभद्रस्तोत्र' को समन्तभद्र-कृत स्तोत्र माननेके लिये बाध्य होना पड़ा। ऐसा माननेमें स्तोत्रका कोई मूल विशेषण नहीं रहता। परन्तु समन्तभद्रकृत स्तोत्र तो और भी हैं उनमेंसे किसीको 'समन्तभद्रस्तोत्र' क्यों नहीं लिखा और इसीको क्यों लिखा ? इसमें लेखकोंकी गलती है या अन्य कुछ, यह बात विचारणीय है। इस सम्बन्धमें यहाँ एक बात प्रकट कर देनेकी है और वह यह कि स्वामी समन्तभद्रके ग्रन्थ प्रायः दो नामोंको लिये हुए हैं। जैसे देवागमका दूसरा नाम 'आप्तमीमांसा', स्तुतिविद्याका दूसरा नाम 'जिनशतक' और समीचीनधर्मशास्त्रका दूसरा नाम 'रत्नकरण्ड' है। इनमेंसे पहला पहला नाम ग्रन्थके प्रारम्भमें और दूसरा . दूसरा नाम ग्रन्थके अन्तिम भागमें सूचित किया गया है । युक्त्यनुशासन ग्रन्थके भी दो नाम हैं-दूसरा नाम 'वीरजिनस्तोत्र' है, जिसकी सूचना आदि और अन्तके दोनों पद्योंमें की गई है। ऐसी.