Book Title: Samvayang Sutram
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 254
________________ [सू० १४४) अनुत्तरोपपातिकदशावर्णनम् । २३५ इड्डिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वजाओ, सुतपरिग्गहा, तवोवहाणाई, पडिमातो, संलेहणातो, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई, अणुत्तरोववत्ति, सुकुलपच्चायाती, पुण बोहिलाभो, अंतकिरिया तो] य आघविजंति । अणुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाई परममंगल्लजगहिताणि, जिणातिसेसा य बहविसेसा, जिणसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं 5 थिरजसाणं परिसहसेण्णरिवुबलपमद्दणाणं तवदित्तचरित्तणाणसम्मत्तसारविविहप्पगारवित्थरपसत्थगुणसंजुयाणं अणगारमहरिसीणं अणगारगुणाण वण्णओ उत्तमवरतवविसिट्ठणाणजोगजुत्ताणं, जह य जगहियं भगवओ, जारिसा य रिद्धिविसेसा देवासुरमाणुसाण । परिसाणं पाउब्भावा य जिणसमीवं, जह य उवासंति जिणवरं, जह य परिकहें(हे)ति धम्मं 10 लोगगुरू अमर-नरा-ऽसुरगणाणं, सोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्मा विसयविरत्ता नरा जहा अब्भुवेंति धम्मं ओरालं संजमं तवं चावि बहुविहप्पगारं जह बहणि वासाणि अणुचरित्ता आराहियनाणदंसणचरित्तजोगा जिणवयणमणुगयमहियभासिता जिणवराण हिययेणमणुणेत्ता जे य जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेयइत्ता लभ्रूण य समाहिमुत्तमं झाणजोगजुत्ता उववन्ना 15 मुणिवरुत्तमा जह अणुत्तरेसु, पावंति जह अणुत्तरं तत्थ विसयसोक्खं तत्तो य चुया कमेण काहिंति संजया जह य अंतकिरियं, एते अन्ने य एवमादित्थ जाव परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, [जाव] संखेजातो संगहणीतो। से णं अंगट्ठयाए नवमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, तिन्नि वग्गा, दस उद्देसणकाला, दस समुद्देसणकाला, संखेजाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं 20 पण्णत्ते । संखेजाणि अक्खराणि जाव एवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जति। सेत्तं अणुत्तरोववातियदसातो । [टी०] से किं तमित्यादि, नास्मादुत्तरो विद्यते इत्यनुत्तर उपपतनमुपपातो जन्मेत्यर्थः, अनुत्तरः प्रधानः संसारे अन्यस्य तथाविधस्याभावादुपपातो येषां ते तथा, त १. वित्थार अटी० ।।

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