Book Title: Samvayang Sutram
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 308
________________ [सू० १५७] शिबिका-तीर्थकरसहदीक्षित-भिक्षा-चैत्यवृक्षादिवर्णनम् । २८९ पुस्से पुणव्वसू पुण णंदे सुणंदे जए य विजए य । पउमे य सोमदेवे महिंददत्ते य सोमदत्ते य ॥१०१॥ अपरातिय वीससेणे वीसतिमे होति उसभसेणे य । दिण्णे वरदत्ते धन्ने बहुले य आणुपुव्वीए ॥१०२।। एते विसुद्धलेसा जिणवरभत्तीय पंजलिउडाओ । तं कालं तं समयं पडिलाभेती जिणवरिंदे ॥१०३।। संवच्छरेण भिक्खा० [लद्धा उसभेण लोगणाहेण । सेसेहिं बीयदिवसे लद्धाओ पढमभिक्खाओ ॥१०४॥] गाहा । उसभस्स पढमभिक्खा० [खोयरसो आसि लोगणाहस्स । सेसाणं परमण्णं अमयरसरसोवमं आसि ॥१०५।।] गाहा । सव्वेसि पि जिणाणं जहियं लद्धातो पढमभिक्खातो । तहियं वसुधारातो सरीरमेत्तीओ वुट्ठातो ॥१०६।। एतेसि णं चउवीसाए तित्थकराणं चउवीसं चेतियरुक्खा होत्था, तंजहाणग्गोह सत्तिवण्णे साले पियते पियंगु छत्तोहे । सिरिसे य णागरुक्खे माली य पिलुंक्खुरुक्खे य ॥१०७॥ तेंदुग पाडलि जंबू आसोत्थे खलु तहेव दधिवण्णे । णंदीरुक्खे तिलए अंबगरुक्खे असोगे य ॥१०८।। चंपय बउले य तहा वेडसरुक्खे तहा य धायईरुक्खे । साले य वद्धमाणस्स चेतियरुक्खा जिणवराणं ॥१०९।। बत्तीसतिं धणूइं चेतियरुक्खो उ वद्धमाणस्स । णिच्चोउगो असोगो ओच्छन्नो सालरुक्खणं ॥११०।। 10 15 १. तुलना- “सव्वेहिं पि जिणेहिं, जहिअं लद्धाओ पढमभिक्खाओ । तहिअं वसुहाराओ, वुट्टाओ पुप्फवुट्टीओ ॥३३१|| अद्धतेरसकोडी उक्कोसा तत्थ होइ वसुहारा । अद्धतेरस लक्खा, जहण्णिआ होइ वसुहारा ॥३३२।।" इति आवश्यकनिर्युक्तौ ।।

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