Book Title: Sambodhi Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ (सात) सम्बोधि शब्द सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यग् चारित्र को अपने में समेटे हुए है । सम्यग् दर्शन के बिना ज्ञान अज्ञान बना रहता है और चारित्र के अभाव में ज्ञान और दर्शन निष्क्रिय रह जाते हैं। आत्म-दर्शन के लिए इन तीनों का समान और अपरिहार्य महत्त्व है । इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए उसका नाम 'सम्बोधि' रखा गया है । लेखक ने अपनी प्रतिपादन पद्धति में समयानुसार कितना परिवर्तन कर लिया है, यह इनके पिछले और वर्तमान साहित्य को देखने से ही पता लग जाता है । 'सम्बोधि' के पद जहां सरल और रोचक बन पड़े हैं, वहां उतनी ही सफलतापूर्वक गहराई में पैठे हैं। उनकी सरलता और मौलिकता का एक कारण यह भी है कि वे भगवान् महावीर की मूलभूत वाणी पर आधारित हैं। बहुत सारे पद्य तो अनूदित हैं। पर उनका संयोजन सर्वथा नवीन शैली लिये हुए है । आशा है अध्यात्म - जिज्ञासु व्यक्तियों को यह ग्रंथ एक अच्छी खुराक देगा । मुझे गौरव है कि मेरे साधु- समुदाय ने मौलिक साहित्य सर्जन की दिशा में प्रगति की है और कर रहा है । मैं चाहता हूं कि लेखक अपनी साधना, I चिन्तन और अभिव्यक्ति में उत्तरोत्तर सफल हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only - आचार्य तुलसी www.jainelibrary.orgPage Navigation
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