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१४:डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ
किया जा सके । निःसन्देह इसके लिये बड़े परिश्रम की आवश्यकता है। स्व० पं० जुगलकिशोरजी मख्तार ने इस दिशामें कुछ प्रयत्न करके निम्न मंगलाचरण कारिकाको उद्धृत किया था
सर्वज्ञ सर्वतत्त्वार्थस्याद्वादन्यायदेशिनम् ।
श्रीवर्द्धमानमभ्यर्च्य वक्ष्ये सिद्धिविनिश्चयम् ॥ हमने भी एक कारिकाको उद्धृत किया है वह यह है
समर्थवचनं जल्पं चतुरङ्ग विदुर्बुधाः । पक्षनिर्णयपर्यन्तं फलं मार्ग प्रभावना ॥
-हस्त-लि० प्रति पृ० ७३५ ( प्रस्ता० ५)। सम्पादकका स्तुत्य प्रयत्न
स्व. डॉ० पं० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यने बहु प्रयास करके उन दोनोंको टीका परसे उद्धृत किया है। इस दुष्कर कार्यमें उन्हें पाँच वर्ष लगे थे । यह उनका अदम्य साहस था । टीकाका योग्यतापूर्ण सम्पादन किया है । ग्रन्थ के साथ १६४ पृष्ठकी महत्त्वपूर्ण एवं असाधारण परिश्रमसे लिखी गयी प्रस्तावना भी निबद्ध की मयी है, जिसमें ग्रन्थकार, ग्रन्थ और सम्पादन सामग्रीकी योजना पर विस्तृत विमर्श किया गया है । ग्रन्थकारभागमें जैन न्यायके ग्रन्थकारोंका विस्तारसे शोधपूर्ण परिचय दिया गया है। ग्रन्थ-भागमें प्रमाण, नय, निक्षेप, सर्वज्ञ, स्याद्वाद, अनेकान्त, सप्तभंगी प्रभृति विषयों पर सूक्ष्म प्रकाश डाला गया है ।
भारतीय दर्शनोंके विशेषज्ञ डॉ० गोपीनाथ कविराज और तत्कालीन उत्तर प्रदेशके मुख्यमंत्री श्री सम्पूर्णानन्दके प्राक्कथन भी ग्रन्थके आरम्भमें दिये गये हैं।
सबसे बड़े आश्चर्यकी बात यह है कि इस ग्रन्थके सम्पादनमें शतश: ग्रन्थोंका अनुशीलन सम्पादकके थोर परिश्रम और अध्ययनको सूचित करता है। पण्डितजीको इसपर काशी हिन्दू विश्वविद्यालयने पी० एच० डी० की उपाधि प्रदान कर उनके पाण्डित्यका सम्मान भी किया।
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