Book Title: Mahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Author(s): Darbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
Publisher: Mahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP

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Page 597
________________ • डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य मूल जैनदर्शन ग्रन्थोंका नामोल्लेख किया इस प्रकरण में प्रमुख रूपसे उन प्राचीन जैनदार्शनिकों और गया, जिनके ग्रन्थ किसी भंडारमें उपलब्ध हैं तथा जिनके ग्रन्थ प्रकाशित हैं । उन ग्रन्थों और ग्रन्थकारोंका निर्देश भी यथासंभव करनेका प्रयत्न करेंगे, जिनके ग्रन्थ उपलब्ध तो नहीं हैं, परन्तु अन्य ग्रन्थोंमें जिनके उद्धरण पाये जाते हैं या निर्देश मिलते हैं । इसमें अनेक ग्रन्थकारोंके समयकी शताब्दी आनुमानिक हैं और उनके पौर्वापर्यमें कहीं व्यत्यय भी हो सकता है, पर यहाँ तो मात्र इस बातकी चेष्टा की गई है कि उपलब्ध और सूचित प्राचीन मूल दार्शनिक साहित्यका सामान्य निर्देश अवश्य हो जाय । दिगम्बर आचार्य ' उमास्वाति - ( वि० १-३ री ) समन्तभद्र ( वि० २-३ री ) सिद्धसेन ( वि० ४-५ वीं ) देवनन्दि ( वि० ६वीं ) श्रीदत्त ( वि० ६वीं ) सुमति (वि० ६वीं ) जैन दार्शनिक साहित्य तत्त्वार्थ सूत्र आप्तमीमांसा युक्त्यनुशासन बृहत्स्वयम्भू स्तोत्र जीवसिद्धि Jain Education International सन्मतितर्क कुछ द्वात्रिंशतिकाएँ ) सारसंग्रह जल्पनिर्णय सन्मतितर्कटीका लघीयस्त्रय ( स्ववृत्तिसहित ) न्यायविनिश्चय १. श्रीवर्णीग्रन्थमाला, बनारसमें संकलित ग्रन्थ-सूचीके आधारसे । प्रकाशित प्रकाशित 31 For Private & Personal Use Only 17 सुमतिसप्तक [ इन्हींका निर्देश शान्तरक्षितके तत्त्वसंग्रह में 'सुमते दिगम्बरस्य ' के रूपमें है ] पात्रकेसरी ( वि० ६वीं ) त्रिलक्षणकदर्शन 'पार्श्वनाथचरित' में वादिराजद्वारा उल्लिखित प्रकाशित 23 धवला - टीकामें उल्लिखित तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिकमें विद्यानन्दद्वारा उल्लिखित | पार्श्वनाथचरितमें वादिराजद्वारा उल्लिखित मल्लिषेण - प्रशस्तिमें निर्दिष्ट पात्रकेसरी - स्तोत्र [ इन्हींका मत शान्तरक्षितने तत्त्वसंग्रहमें 'पात्रस्वामि' के नामसे दिया है । ] वादसिंह ( ६-७वीं) अकलंकदेव ( वि० ७०० ) अनन्तवीर्याचार्य द्वारा सिद्धिविनिश्चय टीकामें उल्लिखित प्रकाशित वादिराजके पार्श्वनाथचरित और जिनसेनके महापुराणमें स्मृत प्रकाशित ( अकलङ्कग्रन्थत्रयमें) प्रकाशित www.jainelibrary.org

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