Book Title: Mahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Author(s): Darbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
Publisher: Mahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP

View full book text
Previous | Next

Page 610
________________ ५/परिशिष्ट : २७ २० ग्रन्थ एवं १५० उच्चस्तरीय लेख प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही आपने अनेक ग्रन्थोंका कुशल सम्पादन भी किया है। ___ आप अनेक बार विदेश यात्रा कर चुके हैं। सन् १९९३ की विश्वधर्म संसद, शिकागोमें आप प्रमुख वक्ताके रूपमें आमंत्रित थे। अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि अनेक देशोंमें आपने अपने व्याख्यान दिये हैं। डॉ० राजाराम जैन सम्प्रति प्राकृत भाषाओंके अध्ययन-अनुशीलनके क्षेत्रमें (स्व०) डॉ० नेमिचन्द्रजी ज्योतिषाचार्यकी प्रवृत्तियोंको गति-प्रदाता डॉ० राजारामजीका जन्म सागर जिलेके मालथौन ग्राममें फरवरी १९२९ ई० को हुआ था। उनका शिक्षण पपौराजी तथा वाराणसीके जैन विद्यालयोंके अतिरिक्त बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयमें भी हुआ। डॉ० जैनने (स्व०) डॉ० हीरालालजी जैनके निर्देशनमें शोधकार्य किया। अपभ्रंश साहित्यके प्रसिद्ध कवि 'रइधू के साहित्यका आपने विशेष अध्ययन किया है । वर्द्धमानचरिउ, महावीरचरिउ आदि आपकी प्रसिद्ध संपादित-साहित्यिक कृतियाँ हैं। सामाजिक और साहित्यिक जीवनमें आप निरन्तर सक्रिय हैं। गणेश वर्णी दि. जैन संस्थान, वाराणसीके आप अध्यक्ष है। डॉ० राजारामजी इस स्मति-ग्रन्थके सम्पादक-मण्डलके वरिष्ठ सदस्य हैं । डॉ० फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' सागर (म० प्र०) जिलेके दलपतपुर ग्राममें जन्में डॉ० 'प्रमी' जी कुशल-वक्ता, यशस्वी-लेखक, सामाजिक चेतनाके धनी युवा विद्वान् हैं । इन्होंने कटनी एवं बनारसके जैन विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की। जैनदर्शनाचार्य, प्राकृताचार्य एवं पी-एच० डी० उपाधिधारी डाँ० प्रेमी, जैन विश्वभारती, लाडनू (राजस्थान) में चार वर्ष प्राध्यापक रह चुके हैं। वे संस्कृत-प्राकृत भाषाओं तथा जैन-दर्शनके गंभीर अध्येता मनीषी हैं। इनका शोध विषय मलाचारका समीक्षात्मक अध्ययन है। वह प्रकाशित है तथा इस पर इन्हें प्रशस्ति-पत्र एवं पाँच हजार रुपयेके साथ १९८८ का महावीर पुरस्कार प्राप्त हुआ है। वे सम्प्रति सम्पर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में जैन-दर्शन-विभागाध्यक्ष हैं। सामाजिक, साहित्यिक और शैक्षणिक प्रवृत्तियोंमें सोत्साह निरत डॉ० प्रेमीजी इस स्मृति-ग्रन्थके सम्पादक-मण्डलके मान्य सदस्य हैं। डॉ० रतन पहाड़ो सन १९४२ में केवल १३ वर्षकी उम्रमें सारनाथ और वाराणसीमें 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में भाग लेने तथा अंग्रेजी सरकार द्वारा जब्त पत्रिका 'रणभेरी' के चोरी छिपे छापने तथा प्रचार करनेके कारण छह माहकी सजा हुई । सन् १९५१ में वर्धा आ गये । आजकल आप कामठी (नागपुर) में रहते हैं । सन् १९५५ में कुछ समयके लिये 'जैन जगत' के सम्पादक भी रहे । अनेकान्त स्वाध्यायमंदिरमें और प्राकृतिक चिकित्साकी प्रवृत्तियों में दिलचस्पी लेते हैं। लगभग १० वर्षों तक दि० जैन बोडिंग हाउसके मंत्री रहे । आचार्य विद्यासागरजीके संघस्थ मनियों, आर्यिकाओंकी प्राकृतिक चिकित्सामें समर्पित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 608 609 610 611 612