Book Title: Mahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Author(s): Darbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
Publisher: Mahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP

View full book text
Previous | Next

Page 604
________________ ५/ जैनदार्शनिक साहित्य : २१ यशोविजय (१८वीं) न्यायखण्डखाद्य ( नव्यशैली) प्रकाशित न्यायालोक भाषारहस्य शास्त्रवार्तासमुच्चयटीका उत्पादव्ययध्रौव्यसिद्धि टीका ज्ञानार्णव अनेकान्त प्रवेश गुरुतत्त्वविनिश्चय आत्मख्याति जैनग्रन्थग्रन्थकारमें तत्त्वालोकविवरण त्रिसूत्र्यालोक द्रव्यालोकविवरण न्यायबिन्दु, प्रमाणरहस्य यशोविजय मंगलवाद, वादमाला वादमहार्णव, विधिवाद वेदान्तनिर्णय सिद्धान्ततर्क परिष्कार सिद्धान्तमञ्जरी टीका स्याद्वादमञ्जूषा ( स्याद्वादमञ्जरीकी टीका ), द्रव्यपर्याययुक्ति यशस्वत् सागर ( १८वीं) जैनसप्तपदार्थी प्रकाशित प्रमाणवादार्थ जैनग्रन्थग्रन्थकारमें वादार्थनिरूपण स्याद्वादमुक्तावली प्रकाशित भावप्रभसूरि ( १८वीं) नयोपदेशटीका प्रकाशित मयाचन्द्र ( १९वीं) ज्ञानक्रियावाद जैनग्रन्थग्रन्थकार पद्म विजयगणि ( १९वीं) तर्कसंग्रहफक्किका ऋद्धिसागर ( २०वीं) निर्णयप्रभाकर इत्यादि इस तरह जैनदर्शन ग्रन्थोंका विशाल कोशागार है। इस सूची में संस्कृत ग्रन्थोंका ही प्रमुखरूपसे उल्लेख किया है । कन्नड़ भाषामें भी अनेक दर्शनग्रन्थोंकी टीकाएँ पाई जाती हैं। इन सभी ग्रन्थोंमें जैनाचार्योंने अनेकान्तदृष्टिसे वस्तुतत्त्वका निरूपण किया है, और प्रत्येक वादका खंडन करके भी उनका नयदृष्टिसे समन्वय किया है। अनेक अजैनग्रन्थोंकी टीकाएँ भी जैनाचार्योंने लिखी है, वे उन ग्रन्थोंके हार्दको बड़ी सूक्ष्मतासे स्पष्ट करती हैं । इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612