Book Title: Mahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Author(s): Darbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
Publisher: Mahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP

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Page 533
________________ ३५० : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ ठहरनेवाला कोई परिणमन नहीं है। जो हमें अनेक क्षण ठहरनेवाला परिणमन दिखाई देता है वह प्रतिक्षणभावी सदृश परिणमनका स्थल दृष्टिसे अवलोकनमात्र है। इस तरह सतत परिवर्तनशील संयोग-वियोगोंकी दृष्टि से विचार कीजिये तो लोक अशाश्वत है, अनित्य है, प्रतिक्षण परिवर्तित है। ३-क्या लोक शाश्वत और अशाश्वत दोनों रूप है ? हाँ, क्रमशः उपर्युक्त दोनों दृष्टियोंसे विचार कीजिए तो लोक शाश्वत भी है ( द्रव्यदृष्टिसे ), अशाश्वत भी है (पर्यायदृष्टिसे) । दोनों दृष्टिकोणोंको क्रमशः प्रयुक्त करनेपर और उन दोनोंपर स्थूलदृ ष्टिसे विचार करनेपर जगत् उभयरूप ही प्रतिभासित होता है । ४- क्या लोक शाश्वत और अशाश्वत दोनों रूप नहीं है ? आखिर उसका पूर्ण रूप क्या है ? हाँ, लोकका पूर्णरूप अवक्तव्य है, नहीं कहा जा सकता। कोई शब्द ऐसा नहीं जो एक साथ शाश्वत और अशाश्वत इन दोनों स्वरूपोंको तथा उसमें विद्यमान अन्य अनन्त धर्मोंको युगपत् कह सके। अतः शब्दकी असामर्थ्य के कारण जगत्का पूर्ण रूप अवक्तव्य है, अनुभव है, वचनातीत है। इस निरूपणमें आप देखेंगे कि वस्तुका पूर्णरूप वचनोंके अगोचर है, अनिर्वचनीय या अवक्तव्य है। यह चौथा उत्तर वस्तुके पूर्णरूपको युगपत् कहनेकी दृष्टिसे है। पर वही जगत् शाश्वत कहा जाता है द्रव्यदृष्टिसे, अशाश्वत कहा जाता है पर्याय दृष्टिसे । इस तरह मूलरूपसे चौथा, पहिला और दूसरा ये तीन प्रश्न मौलिक हैं । तीसरा उभयरूपताका प्रश्न तो प्रथम और द्वितीयके संयोगरूप है । अब आप विचारें कि संजयने जब लोगके शाश्वत और अशाश्वत आदिके बारेमें स्पष्ट कह दिया कि मैं जानता होऊँ तो बताऊँ और बुद्धने कह दिया कि इनके चक्कर में न पड़ो, इसका जानना उपयोगी नहीं है, तब महावीरने उन प्रश्नोंका वस्तुस्थितिके अनुसार यथार्थ उत्तर दिया और शिष्योंकी जिज्ञासाका समाधानकर उनको बौद्धिक दीनतासे त्राण दिया । इन प्रश्नोंका स्वरूप इस प्रकार हैप्रश्न संजय बुद्ध महावीर १-क्या लोक शाश्वत है? मैं जानता होऊँ तो बताऊँ इसका जानना हाँ, लोक द्रव्यदृष्टिसे शाश्वत (अनिश्चय, विक्षेप) अनुपयोगी है है, इसके किसी भी सत्का ( अव्याकृत सर्वथा नाश नहीं हो सकता। अकथनीय) २-क्या लोक अशाश्वत है ? हाँ, लोक अपने प्रतिक्षण भावी परिवर्तनोंकी दृष्टिसे अशाश्वत है, कोई भी परि वर्तन दो क्षणस्थायी नहीं है। ३-क्या लोक शाश्वत और अशाश्वत ,, हाँ, दोनों दृष्टिकोणोंसे क्रमशः विचार करनेपर लोकको शाश्वत भी कहते हैं और अशाश्वत भी। ४-क्या लोक दोनों रूप नहीं है हाँ, ऐसा कोई शब्द नहीं अनुभय है ? जो लोकके परिपूर्ण स्वरूपको एक साथ समग्र भावसे कह सके। अतः पूर्णरूपसे वस्तु अनुभय है, अवक्तव्य है, अनिर्वचनीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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