Book Title: Jay Vardhaman Author(s): Ramkumar Varma Publisher: Bharatiya Sahitya Prakashan View full book textPage 9
________________ न जाइमत्ते न य रूवमत्ते न लाभमत्ते न सुएणमते । मयाणि सव्वाणि विवज्जयंती धम्मज्माणरए जे स भिक्खू ॥ (दशवकालिक १०-१६) (जिसे जाति का अभिमान नहीं है, रूप का अभिमान नहीं है, लाभ का अभिमान नहीं है, ज्ञान का अभिमान नहीं है, जिसने सब प्रकार के मद छोड़ दिये हैं, और जो धर्म के ध्यान में निरत है, वही भिक्षु है।)Page Navigation
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