Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 5
________________ ४(30 ॥ अथ शिलोका संग्रह प्रारंनः॥ *** * -- ॥ अथ रिखब देवजीको शिलोको लिख्यते ॥ सरसति माता द्यो मुज वाणी, समरूं जिन शासन वरदानी वाणी ॥ नानिराया ने मरुदे वा राणी , कुंखें नपना केवल नाणी ॥१॥च वदे सुपनमां रात विहाणी, बीजे शास्त्रे तो सब ली वखाणी ॥मेंतो संपें कीयोडे जाणी, हिवे वरदीओ माता ब्रम्हाणी ॥२॥पूरे महिने बा लक जायो, बपन्न कुमारी मिलीने गायो ॥ चो शठ इंद्रादिक ओबवावे, मेरु जइने नीरें न्ह घरावे ॥३॥ वलतो मावित्रे अोबव कीधो, ना म ऋषन कुंअर दीधो॥ माता धवरावे नवराके गावे, मोटेरा हुआ मेवा खयरावे ॥४॥श्राप 0 इतलानां नाम न आवे, कोशं विचारी ते न ली नावे॥घेवर जिलेबी लाडु लाखीणा, पेंडाप तासां फल फलतां फेणा ॥ ५॥ रूडा दहिंथरां देवगरां थाली, माहे मरकीने सेव सुंघाली ॥सा करनो शीरो लापशी तरकारी, मरुदेवा माता पीरशे दशवारी॥ ६ ॥ मातायें बालकनं मन

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