Book Title: Jain Darshan Me Dravya Gun Paryaya ki Avadharna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 25
________________ 16 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा 1. अस्तिकाय की अवधारणा के आधार पर : द्रव्य (अ) अस्तिकाय द्रव्य (ब) अनास्तिकाय द्रव्य काल 1. जीव 2. धर्म 3. अधर्म 4. आकाश 5. पुद्गल 2. मूर्तता लक्षण के आधार पर : द्रव्य अमूर्त द्रव्य मूर्त द्रव्य पुद्गल 1. जीव 2. धर्म 3. अधर्म 4. आकाश 5. काल 3. चेतन-अचेतन लक्षण के आधार पर : द्रव्य अचेतन द्रव्य चेतन द्रव्य 1. धर्म 2. अधर्म 3. आकाश 4. काल 5. पुद्गल 6. जीव द्रव्यों के उपर्युक्त वर्गीकरण के पश्चात् इन षद्रव्यों के स्वरूप और लक्षण पर भी विचार कर लेना आवश्यक है। जीव द्रव्य : जीव द्रव्य को अस्तिकाय वर्ग के अन्तर्गत रखा जाता है। जीव द्रव्य का लक्षण उपयोगया चेतना को माना गया है। इसलिए इसे चेतनद्रव्य भी कहा जाता है। उपयोग या चेतना के दो प्रकारों की चर्चा ही आगमों में मिलती है-निराकार उपयोग और साकार उपयोग / इन दोनों को क्रमशः दर्शन और ज्ञान कहा जाता है। निराकार उपयोग को वस्तु के सामान्य स्वरूप को ग्रहण करने केकारण दर्शन कहा जाता है और साकार उपयोग को वस्तु के विशिष्ट स्वरूप का ग्रहण करने केकारण ज्ञान कहा जाता है। जीव द्रव्य के सन्दर्भ में जैनदर्शन की विशेषता यह है कि जीव द्रव्य को एक अखण्ड द्रव्य न मानकर अनेक द्रव्य मानता है। उसके अनुसार प्रत्येक जीव की स्वतन्त्र सत्ता है और विश्व में जीवों की संख्या अनन्त है। इस प्रकार संक्षेप में जीव अस्तिकाय, चेतन, अरूपी और अनेक द्रव्य हैं।

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