Book Title: Jain Darshan Me Dravya Gun Paryaya ki Avadharna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 33
________________ 24 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा करता है और इस आधार पर आत्मा को स्वदेह-परिणाम मानता है। जैसे दीपक का प्रकाश छोटे कमरे में रहने पर छोटे कमरे को और बड़े कमरे में रहने पर बड़े कमरे को प्रकाशित करता है, वैसे ही आत्मा भी जिस देह में रहता है उसे चैतन्याभिभूत कर देता है। आत्मा के विभुत्व की समीक्षा : 1. यदि आत्मा विभु (सर्वव्यापक) है तो वह दूसरे शरीरों में भी होगा, फिर उन शरीरों के कर्मों के लिए उत्तरदायी होगा। यदि यह माना जाये कि आत्मा दूसरे शरीरों में नहीं है, तो फिर सर्वव्यापक नहीं होगा। 2. यदि आत्मा विभु है, तो दूसरे शरीरों में होनेवाले सुख-दुःख के भोग से कैसे बच सकेगा? 3. विभु आत्मा के सिद्धान्त में कौन आत्मा किस शरीर का नियामक है, यह बताना कठिन है। वस्तुतः नैतिक और धार्मिक जीवन के लिए प्रत्येक शरीर में एक आत्मा का सिद्धान्त ही संगत हो सकता है, ताकि उस शरीर के कर्मों के आधार पर उसे उत्तरदायी ठहराया जा सके। 4. आत्मा की सर्व व्यापकता का सिद्धान्त अनेकात्मवाद के साथ कथमपि संगत नहीं हो सकता। साथ ही अनेकात्मवाद के अभाव में नैतिक जीवन की संगत व्याख्या सम्भव नहीं है। ___ पुनः आत्मा को अणु भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अणु आत्मा शरीर के एक भाग में होगा, अतः सम्पूर्ण चेतनायुक्त नहीं होगा। अतः आत्मा को शरीर-व्यापी मानना ही उचित है। आत्माएँ अनेक हैं : ___आत्मा एक है या अनेक यह दार्शिनिक दृष्टि से विवाद का विषय रहा है। जैनदर्शन के अनुसार आत्माएँ अनेक हैं और प्रत्येक शरीर की आत्मा भिन्न है। यदि आत्मा को एक माना जाता है तो नैतिक दृष्टि से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। एकात्मवाद की समीक्षा : 1. आत्मा को एक मानने पर सभी जीवों की मुक्ति और बन्धन एक साथ होंगे। इतना ही नहीं, सभी शरीरधारियों के नैतिक विकास एवं पतन की विभिन्न अवस्थाएँ भी युगपद् होंगी। लेकिन ऐसा तो दिखता नहीं। सब प्राणियों का आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास का स्तर अलग-अलग है। यह भी माना जाता है कि अनेक व्यक्ति मुक्त हो चुके हैं और अनेक अभी बन्धन में हैं। अतः आत्माएँ एक नहीं अनेक हैं। 2. आत्मा को एक मानने पर वैयक्तिक-नैतिक प्रयासों का मूल्य समाप्त हो जायेगा। यदि आत्मा एक ही है तो व्यक्तिगत प्रयासों एवं क्रियाओं से न तो उसकी मुक्ति सम्भव होगी और न वह बन्धन में ही जायेगा।

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