Book Title: Jain Darshan Me Dravya Gun Paryaya ki Avadharna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 46
________________ 37 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा यह दृश्य जगत् पुद्गल के ही विभिन्न संयोगों का विस्तार है। अनेक पुद्गल परमाणु मिलकर स्कन्ध की रचना करते हैं और इन स्कन्धों से ही मिलकर दृश्य जगत् की सभी वस्तुयें निर्मित होती हैं। नवीन स्कन्धों के निर्माण और पूर्व निर्मित स्कन्धों के संगठन और विघटन की प्रक्रिया के माध्यम से ही दृश्य जगत् में परिवर्तन घटित होते हैं और विभिन्न वस्तुएँ और पदार्थ अस्तित्व में आते हैं। __ जैन आचार्यों ने पुद्गल को स्कन्ध और परमाणु इन दो रूपों में विवेचित किया है। विभिन्न परमाणुओं के संयोग से ही स्कन्ध बनते हैं या स्कन्ध टूटकर स्कन्ध बनते हैं। फिर भी इतना स्पष्ट है कि पुद्गल द्रव्य का अन्तिम घटक परमाणु ही है। प्रत्येक परमाणु में स्वभाव से एक रस, एक रूप, एक गन्ध और शीत-उष्ण या स्निग्ध-रुक्ष में से कोई दो स्पर्श पाये जाते हैं। __ जैन आगमों में वर्ण पाँच माने गये हैं लाल, पीला, नीला, सफेद और काला; गन्ध दो हैंसुगन्ध और दुर्गन्ध; रस पाँच है-रिक्त, कटु, कसैला, खट्टा और मीठा; और इसी प्रकार स्पर्श आठ माने गये हैं- शीत और उष्ण, स्निग्ध और रुक्ष, मृदु और कर्कश, हल्का और भारी / स्वतन्त्र परमाणु में अन्तिम चार स्पर्श नहीं होते हैं। ये चार स्पर्श तभी सम्भव होते हैं जब परमाणुओं से स्कन्धों की रचना होती है और तभी उनमें मृदु, कठोर, हल्केऔर भारी गुण भी प्रकट हो जाते हैं / परमाणु एक प्रदेशी होता है जब कि स्कन्ध में दो या दो से अधिक असंख्य प्रदेश भी हो सकते हैं। स्कन्ध, स्कन्ध-देश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु ये चार पुद्गल द्रव्य के विभाग हैं। इनमें परमाणु निरवयव है, आगम में उसे आदि, मध्य और अन्त से रहित बताया गया है इसके विपरीत स्कन्ध में आदि और अन्त होते हैं। न केवल भौतिक वस्तुएँ अपितु शरीर, इन्द्रियाँ और मन भी स्कन्धों का ही खेल है। स्कन्धों के प्रकार : जैनदर्शन में स्कन्धों के निम्न 6 प्रकार माने गये हैं: 1. स्थूल-स्थूल-इस वर्ग के अन्तर्गत विश्व के समस्त ठोस पदार्थ आते हैं। इस वर्ग के स्कन्धों की विशेषता यह है कि छिन्न-भिन्न होने पर मिलने में असमर्थ होते हैं, जैसे-पत्थर।। 2. स्थूल-जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होने पर स्वयं आपस में मिल जाते हैं वे स्थूल स्कन्ध कहे जाते हैं। इसके अन्तर्गत विश्व के तरल द्रव्य आते हैं, जैसे-पानी, तेल आदि। 3. स्थूल-सूक्ष्म-जो पुद्गल स्कन्ध छिन्न-भिन्न नहीं किये जा सकते हों अथवा जिनका ग्रहण या लाना-ले जाना सम्भव नहीं हो, किन्तु जो चक्षु इन्द्रिय के या अनुभूति के विषय हों वे स्थूल-सूक्ष्म या बादर-सूक्ष्म कहे जाते हैं, जैसे-प्रकाश, छाया, अन्धकार आदि /

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