Book Title: Jain Darshan Me Dravya Gun Paryaya ki Avadharna
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 37
________________ 28 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा आवश्यक है और वह केवल पंचेन्द्रिय जीवों में भी उन्हीं में सम्भव है, जो समनस्क हैं। यहाँ जैविक आधार पर भी आत्मा के वर्गीकरण पर विचार अपेक्षित है, क्योंकि जैनधर्म का अहिंसा-सिद्धान्त बहुत कुछ उसी पर निर्भर है। जैविक आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण : जीव त्रस स्थावर पंचेन्द्रिय चतुरिन्द्रिय त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय पृथ्वीकाय अप्काय तेजस्काय वायुकाय वनस्पतिकाय जैविक दृष्टि से जैन-परम्परा में दस प्राणशक्तियाँ मानी गयी हैं। स्थावर एकेन्द्रिय जीवों में चार शक्तियाँ होती हैं- 1. स्पर्श-अनुभव शक्ति, 2. शारीरिक शक्ति, 3. जीवन (आयु) शक्ति और 4. श्वसन शक्ति / द्वीन्द्रिय जीवों में इन चार शक्तियों के अतिरिक्त स्वाद और वाणी की शक्ति भी होती है। त्रीन्द्रिय जीवों मे सूघने की शक्ति भी होती है। चतुरिन्द्रिय जीवों में इन सात शक्तियों केअतिरिक्त देखने की सामर्थ्य भी होती है। पंचेन्द्रिय अमनस्क जीवों मे इन आठ शक्तियों के साथ-साथ श्रवणशक्ति भी होती है और समनस्क पंचेन्द्रिय जीवों में इनके अतिरिक्त मनःशक्ति भी होती है। इस प्रकार जैनदर्शन में कुल दस जैविक-शक्तिया या प्राणशक्तिया मानी गयी हैं। हिंसा-अहिंसा के अल्पत्व और बहुतत्व आदि का विचार इन्हीं जैविक-शक्तियों की दृष्टि से किया जाता है। जितनी अधिक प्राणशक्तियों से युक्त जीव (प्राणी) की हिंसा की जाती है, वह उतनी ही भयंकर समझी जाती है। गतियों के आधार पर जीवों का वर्गीकरण : जैन-परम्परा में गतियों के आधार पर जीव चार प्रकार के माने गए हैं- 1. देव, 2. मनुष्य, 3. पशु (तिर्यंच) और 4. नारक। जहाँ तक शक्ति और क्षमता का प्रश्न है, देव का स्थान मनुष्य से ऊचा माना गया है। लेकिन जहाँ तक नैतिक साधना की बात है जैन-परम्परा मनुष्य-जन्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानती है। उसके अनुसार मानव-जीवन ही ऐसा जीवन है जिससे मुक्ति या नैतिक पूर्णता प्राप्त की जा सकती है। जैन-परम्परा केअनुसार केवल मनुष्य ही सिद्ध हो सकता है, अन्य कोई नहीं। बौद्ध-परम्परा में भी उपर्युक्त चारों जातियाँ स्वीकृत रही हैं, लेकिन उनमें देव और मनुष्य दोनों में ही मुक्त होने की क्षमता को मान लिया गया है। बौद्ध-परम्परा के अनुसार एक देव भी मानव-जन्म ग्रहण किये बिना ही देव-गति

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