Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 8
________________ विज्ञान द्वारा भौतिक सुख-सुविधा अत्यधिक बढ़ा देने पर भी मनुष्य पहले से अधिक सुखी बना हो ऐसा नहीं दिखायी देता, बल्कि जहाँ सुख के साधन बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं वहाँ अशांति बहुत अधिक मात्रा में दिखाई देती है । अमेरिका आदि देशों में सुख के साधनों की विपुलता के साथ-साथ जीवन में अशांति और मानसिक तनाव अधिक है। इसलिए शांति की भूख बढ़ी है और लोगों का 'ध्यान' की ओर आकर्षण बढ़ा है। परिणामस्वरूप ध्यान के विविध प्रयोग देश और विदेशों में हो रहे हैं। ध्यान द्वारा शांति प्राप्ति के प्रयत्न हो रहे हैं। भारत की ब्राह्मण और श्रमण संस्कृति में ध्यान पर बहुत प्रयोग हुए । और ध्यान की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है, पर कहीं उसमें विकृति आई, तो कहीं वह उस रूप में न रहकर लुप्त हो गई। विपश्यना ध्यान पद्धति के विषय में ऐसा ही कुछ हुआ । यह मूल में भगवान बुद्ध द्वारा प्रचलित पद्धति थी, जिसे उन्होंने जन-कल्याण की भावना से प्रेरित होकर करुणा भाव से प्रचारित की थी। जिसका लाखों लोगों ने लाभ उठाकर अपूर्व शान्ति पाई थी। पर भारत में वह शुद्ध रूप में नहीं रह पाई । लेकिन वह पद्धति बर्मा में बौद्ध धर्म के साथ गई और विशुद्ध रूप में अब तक चल रही है । __उस पद्धति को श्रीमान् सत्यनारायणजी गोयन्का ने साधना द्वारा अपनाकर उसे जन-कल्याण की भावना से अविश्रान्त परिश्रम लेकर प्रसार कर रहे हैं। उन्होंने अब तक भारत के सभी राज्यों में अनेकों शिविर लिए। वे इतने लोकप्रिय तथा उपयोगी बने कि लोगों में विपश्यना ध्यान पद्धति के लिए चारों

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