Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 34
________________ ५. बुद्धि-विलास धर्म नहीं है चिन्तन-मनन द्वारा धर्म की सैद्धान्तिक जानकारी कर लेने मात्र से हमारा वास्तविक लाभ नहीं होता । यह जान और समझ लेने मात्र से कि रसगुल्ला मीठा है, हमारा मुंह मीठा नहीं हो सकता। उसके लिए तो हमें रसगुल्ला जीभ पर धरना ही होता है। केवल यह जान और समझ लेने से कि दूध पुष्टिकारक है, हमारी देह पुष्ट नहीं हो जाती । उसके लिए तो हमें दूध पीना ही होता है । जानना और समझ लेना हमारे कल्याण की पहली सीढ़ियाँ हैं । परन्तु केवल जान और समझकर ही रुक जायँ और जानी समझी बात को जीवन में न उतारें तो ऐसा जानना समझना व्यर्थ गया। कोरा बुद्धि-विलास, कोरी दिमागी कसरत हुई । और यही तो हम करते हैं। धार्मिक और दार्शनिक सिद्धान्तों के ऊहापोह, वाद-विवाद, चर्चा-परिचर्चा, बहस-मुबाहस, खंडन-मंडन, तर्क-वितर्क, व्यंजना-विश्लेषण, समझने-समझाने, सुनने-सुनाने, पढ़ने पढ़ाने, लिखने-लिखाने और बोलने-बतलाने में ही हम अपना सारा जीवन बिता देते हैं और दुर्भाग्य यह है कि इसी में अपने जीवन की सफलता मानते हैं। __ अजीब सन्तोष होता है हमें अपनी धर्म-जिज्ञासा पूरी कर लेने में तथा बौद्धिक स्तर पर जाने हुए उस धर्म-ज्ञान को लच्छेदार भाषा में व्यक्त करने की क्षमता प्राप्त कर लेने में। इस आत्म-संतुष्टि को ही हमने जीवन का अन्तिम लक्ष्य मान लिया है । सचमुच, कैसा आकर्षक है यह मृगजाल, जिसमें कि हम इतनी आसानी से फंस जाते हैं और फिर इस बन्धन को ही आभूषण मानकर गर्व अनुभव करते हैं ।

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