Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 54
________________ सुख-दुख दोनों एक से, मान और अपमान । चित विचलित होवे नहीं, तो सच्चा कल्याण ॥ जीवन में आते मन की समता न रहें, पतझड़ और छुटे, तो सुख-शांति बसंत । अनंत ॥ ज्यूं ज्यूं अंतर्जगत में, निर्मल समता छाय | वाणी चित्त के, कर्म सुधरते जायँ ॥ काया तन सुख, मन सुख, मान सुख, भले ध्यान सुख होय । पर समता सुख परम सुख, अतुल अपरिमित होय ॥ शुद्ध धर्म जग छाए समता विषम जगत में चित्त की, समता रहे अटूट । तो उत्तम मंगल जगे, होय दुखों से छूट ॥ में जगे, होय विषमता दूर । सुखमयी, योग-क्षेम भरपूर ॥

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