Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ धर्म : जीवन जीने की कला धर्मचक्र जागता है तो विवेक, विद्या, और होश जागता है। जैसे ही किसी इन्द्रिय और उसके विषय के संस्पर्श से चित्त में कोई संवेदना पैदा हो, प्रिय या अप्रिय, सुखद या दुखद-वैसे ही पागलों की तरह उस विषय के प्रति राग-रंजित और द्वष-दूषित होने के बजाय उसके नश्वर-निस्सार स्वभाव को समझकर प्रज्ञा जागे, अनासक्तिभाव जागे । इसी से लोकचक्र का प्रवर्तन रुकता है । उसका विस्तार नहीं हो पाता। यही धर्म-चक्र प्रवर्तन है । धर्मचक्र प्रवर्तन का यह प्रत्यक्ष लाभ है । विपश्यना साधना के सतत् अभ्यास द्वारा अपने अन्तमन में अनुभूत होने वाली प्रत्येक संवेदना को जाने और जानकर उसमें उलझें नहीं । तटस्थ बने रहें । यों धर्मचक्र प्रवर्तित रखें। धर्मचक्र प्रवर्तित रखने में हमारा मंगल-कल्याण है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119