Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 67
________________ १२. क्या पड़ा है 'नाम' में ? पुरानी बात है। किसी व्यक्ति के माँ-बाप ने उसका नाम पापक (पापी) रख दिया । बड़ा हुआ तो यह नाम उसे बहुत बुरा लगने लगा। उसने अपने आचार्य से प्रार्थना की कि भन्ते ! मेरा नाम बदल दें। यह नाम बड़ा अप्रिय है क्योंकि अशुभ, अमांगलिक और मनहूस है। आचार्य ने उसे समझाया कि नाम तो केवल प्रज्ञप्ति के लिए, व्यवहार जगत में पुकारने भर के लिए होता है । नाम बदलने से कोई मतलब सिद्ध नहीं होगा। कोई पापक नाम रखकर भी सत्कर्मों से धार्मिक बन सकता है और धार्मिक नाम रहे तो भी दुष्कर्मों से पापी बन सकता है । मुख्य बात कर्म की है । नाम बदलने से क्या होगा ? पर वह नहीं माना । आग्रह करता ही रहा। तब आचार्य ने कहा"अर्थ सिद्धि तो कर्म सुधारने से होगी, परन्तु यदि तू नाम भी सुधारना चाहता है तो जा, गाँव-नगर के लोगों को देख और जिसका नाम तुझे मांगलिक लगे, वह मुझे बता । तेरा नाम वैसा ही बदल दिया जायेगा।" पापक सुन्दर नाम वालों की खोज में निकल पड़ा । घर से बाहर निकलते ही उसे शव-यात्रा के दर्शन हुए। पूछा, कौन मर गया ? लोगों ने बतायाजीवक । पापक सोचने लगा, नाम जीवक, पर मृत्यु का शिकार हो गया ? ___ आगे बढ़ा तो देखा किसी दीन-हीन दुखियारी स्त्री को मार-पीटकर घर से निकाला जा रहा है। नाम पूछा तो बताया गया-धनपाली। पापक सोचने लगा नाम धनपाली और पैसे-पैसे को मोहताज । और आगे बढ़ा तो एक राह भूले व्यक्ति को लोगों से राह पूछते पाया। नाम पूछा तो बताया गया-पंथक । पापक फिर सोच में पड़ गया। अरे ! पंथक भी पंथ पूछते हैं ! पंथ भूलते हैं !

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