Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 69
________________ धर्म : जीवन जीने की कला का पात्र हो जाता है । लेकिन जहाँ राजन्य नाम के हजारों-लाखों रंक हों और सबके सब संगठित होकर अपने आपको राव राजा मानने लगें तथा अन्य सभी लोगों को हेय दृष्टि से देखने लगें तो पागलों का ऐसा गिरोह केवल उपहासास्पद ही नहीं, बल्कि सारे समाज के लिए खतरे का कारण बन जाता है । ठीक यही दशा हमारी हो जाती है, जब हम जातीयता, साम्प्रदायिकता या राष्ट्रीयता की वारुणी चढ़ाकर प्रमत्त हो उठते हैं और अपने आप को औरों से श्रेष्ठ मानते हुए उन्हें घृणा की दृष्टि से देखने लगते हैं । ऐसी अवस्था में हम भी समाज के लिए खतरे का और उसकी अशान्ति का कारण बन जाते । सच तो यह है कि अपने खतरे और अपनी अशान्ति का कारण बन जाते हैं । सुख-शांति खोकर सच्चे धर्म से दूर पड़ जाते हैं । धर्म को जाति, वर्ण, वर्ग, समुदाय, सम्प्रदाय, देश, राष्ट्र की सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता । मानव समाज के किसी भी वर्ग में धर्मवान व्यक्ति हो सकता है । धर्म पर किसी एक वर्ग विशेष का एकाधिकार नहीं हुआ करता । धर्म हमें नेक आदमी बनना सिखाता है । नेक आदमी नेक आदमी है । वह अपने सम्प्रदाय की ही नहीं, प्रत्युत सारे मानव समाज की शोभा है । जो आदमी ही नहीं है, वह नेक हिन्दू या मुसलमान, नेक बौद्ध या जैन, नेक भारती या बर्मी, नेक ब्राह्मण या क्षत्रिय कैसे हो सकता है ? और जो नेक आदमी हो गया वह सही माने में धर्मवान हो गया । उसे कोई किसी नाम से पुकारे, क्या फर्क पड़ता है ? गुलाब गुलाब ही रहेगा, नाम बदल देने से उसकी महक में कोई अन्तर नहीं आयेगा । जिस बगिया में खिलेगा, न केवल उसे बल्कि ऑस पास के सारे वायुमण्डल को अपनी सौरभ से सुरभित करेगा । अतः मुख्य बात है धर्मवान बनने की । नेक इन्सान बनने की । नाम चाहे सो रहे । बगिया चाहे जिस समुदाय की हो । उस पर चाहे जिस नाम का बोर्ड लगा हो । फूल खिलने चाहिए । सौरभ बिखरना चाहिए । ५८ साम्प्रदायिकता और जातीयता का रंगीन चश्मा उतारकर देखें तो ही धर्म का शुद्ध रूप समझ में आता है । अन्यथा अपने सम्प्रदाय का रंग-रोगन, नामलेबल ही सारी प्रमुखता ले लेता है । धर्म का सार महत्त्वहीन हो जाता है । धर्म की कसौटी पर किसी व्यक्ति को कसकर देखना हो तो यह नहीं देखेंगे कि वह किस सम्प्रदाय में दीक्षित है ? अथवा किस दार्शनिक मान्यता को मानता है ? अथवा किन रूढ़ियों को पालता है ? वरन् यह देखेंगे कि उसका आचरण

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