Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 82
________________ राग सदृश ना रोग है, द्वेष सदृश ना दोष । मोह सदृश ना मूढ़ता, धर्म सदृश ना होश ।। राग द्वेष की मोह की, जब तक मन में खान । तब तक सुख का, शांति का, जरा न नाम निशान ।। तीन बात बंधन बंधे, राग द्वेष अभिमान। तीन बात बंधन खुले, शील समाधि, ज्ञान ।। धर्मचक्र जिससे चालित सारी करें, प्रज्ञा लेयं जगाय । गंदगी, मन पर की हट जाय ॥ सुख दुख आते ही रहें, ज्यों आवें दिन रैन। तू क्यूं खोवे बावला ! अपने मन की चैन । भोक्ता बन कर भोगते, बंधन बंधते जायं । द्रष्टा बन कर देखते, बंधन खुलते जायं ।

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