Book Title: Dharm Jivan Jine ki Kala
Author(s): Satyanarayan Goyanka
Publisher: Sayaji U B Khin Memorial Trust Mumbai

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Page 46
________________ द्वेष और स्नेह और दुर्भाव से, आकुल - व्याकुल होय । सद्भाव से, हर्षित पुलकित होय ॥ निर्धन या धनवान हो, अनपढ़ या विद्वान | जिसने मन मैला किया, उसके व्याकुल प्राण ॥ मन ही दुर्जन, मन सुजन, मन बैरी मन मीत । जीवन में मंगल जगे, जब मन होय पुनीत ॥ मन बंधन का मूल है, मन ही मुक्ति उपाय | विकृत मन जकड़ा रहे, निर्विकार खुल जाय || अपना सुधरा चित्त ही, आए अपने काम । जो सुख चाहे मानवी मन पर राख लगाम ॥ चित्त हमारा करुणा मैत्री , शुद्ध हो, सद्गुण से भर जाय । प्यार से, मन मानस लहराय ||

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