Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ दूसरा पायाम है। प्राचार्य कुन्दकुन्द द्वारा प्रदत्त अष्टपाहुड' (आठ(ग्रन्थों) की भेंट) समाज में मूल्यात्मक चेतना के विकास के लिए समर्पित है। ये आठ ग्रन्थ मनुष्यों को मूल्यात्मक तुष्टि की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करते हैं। जीवन का संवेगात्मक पक्ष ही मूल्यात्मक तुष्टि का आधार होता है । ये आठ ग्रन्थ (दर्शनपाहुड, सूत्रपाहुड, चारित्रपाहुड. बोधपाहुड, भावपाहुड, मोक्षपाहुड, लिमपाहुड और शीलपाहुड) जीवन को समग्ररूप (अनेकान्तिक रूप) से देखने को दृष्टि प्रदान करते हैं। मनुष्य के जीवन में ज्ञान और संवेग एक . दूसरे से गुथे हुए वर्तमान रहते हैं । प्रत्येक मूल्यात्मक अनुभूति . 1. अष्टपाहुह में 503 गाथाएं हैं। इनमें से ही हमने 100 गाथामों का चयन 'मष्टपाड-चयनिका' के अन्तर्गत किया है। प्रष्टपाहुड में [दर्शनपाहुर (36), सूत्रपाहुड (27), चारित्रपाहुड (45), बोधपाहुर (62), भावपाहुड (165), मोक्षपाहुड (106) लिंगपाड (22) पौर शील पाहुर (40)] ये पाठ ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनके रचयिता प्राचार्य कुन्दकुन्द हैं। . प्राचार्य कुन्दकुन्द दक्षिण के निवासी थे। इनका मूल स्थान कोण्डकुन्द था जो मांध्र प्रदेश के मनन्तपुर जिले में स्थित कोनकोण्डल है। इनका समय 1 ई. पूर्व से लगाकर 528 ई. पश्चात् तक माना गया है । डा. ए.एन. उपाध्ये के अनुसार इनका समय ईसवी सन् के प्रारम्भ में रखा गया है। "I am inclined to believe, after this long survey of the available material, that Kundakunda's age lies at the beginning of the Christian era" (P. 21 Introduction of Pravacanasara) प्राचार्य कुन्दकुन्द के सभी ग्रन्थ (समयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय सार, नियमसार और प्रष्टपार) अध्यात्म प्रधान शैली में लिखे गये होने से प्रध्यात्म प्रेमी लोगों के लिए भाकर्षण के केन्द्र रहे हैं। प्रष्टपाड-चयनिका के अतिरिक्त समयसार-चयनिका मोर प्रवचनसार-चयनिका भी शीघ्र ही प्रकाशित होगी। चयनिका ] [ iji Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106