Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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28 भावो हि पढमलिगं रण दलिगं च जाणः परमत्थं ।
भावो कारणभूदो गुणदोसारणं जिणा बिति ॥
29 भावविसुद्धिणिमित्तं बाहिरगंथस्स. कोरए चानो।.
बाहिरचायो विहलो अभंतरगंथजुत्तस्स ॥
.
30 जाणहि भावं पढमं किं ते लिंगेन भावरहिएण ।
पंथिय ! सिवपुरिपंथं जिणउवइटें पयत्तेण ॥
31 रयणत्तये प्रलद्ध एवं भमिनो सि दोहसंसारे।
इय जिरणवरेहि भरिणयं तं रयरगत्तं समायरह ॥
32 भावविमुत्तो मुत्तो ग य मुत्तो बंधवाइमित्तण । __इय भाविऊरण उज्झसु गंध अभंतरं धीर ॥
12 ]
[ अष्टपाहुड
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