Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 29
________________ 1 वह आत्मा रूप, रसादि रहित है, उसका ग्रहण केवल अनुभव से होता है, उसका स्वभाव ज्ञान व चेतना है ( 37, 38 ) । ठीक ही कहा है : यदि मनुष्य आत्मा (समता ) को नहीं चाहता है और सकल पुण्यों ( शुभ भावों) को करता है, तो भी वह पूर्ण तनाव मुक्त नहीं होने से परम शान्ति प्राप्त नहीं कर पाता है ( 14, 42 ) । अतः योगी पुण्यों ( शुभ भावों) तथा पापों ( अशुभ भावों) को तनाव का कारण जानकर त्याग देना चाहता है और केवल आत्मा (समता ) में ही रुचि या श्रद्धा रखता है ( 76 ) । इस तरह से जो हेय ( त्यागने योग्य) और उपादेय ( ग्रहण करने योग्य ) को समझता है वह भी सम्यग्दृष्टि होता है ( 12 ) 1 इस सम्यग्दर्शन ( सम्यक्त्व ) का जीवन में इतना महत्व समझा गया है कि इसे परम शान्ति की पहली सीढ़ी माना गया है ( 8, 52 ) यह कहा गया है कि सम्यग्दर्शन रहित ( तनाव पूर्ण ) मनुष्य हिलने डुलने वाला शव होता है । जैसे शव लोक में आदरणीय नहीं होता है, वैसे ही हिलने-डुलने वाला शव असाधारण मनुष्यों में आदरणीय नहीं होता है ( 50 ) । जैसे तारों में चन्द्रमा तथा समस्त हरिण समूह में सिंह प्रधान होता है, वैसे ही साधु तथा गृहस्थ धर्म में सम्यग्दर्शन ही प्रधान होता है ( 51 ) । इससे मति शुद्ध होती है अर्थात् बुद्धि उचित कार्यों में अपने को लगाती है ( 80 ) । यहाँ यह समझना चाहिए कि जिसके हृदय में सम्यग्दर्शनरूपी जल का प्रवाह नित्य विद्यमान होता है, उसकी प्रशान्ति धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है ( 2 ) । जैसे डोरे सहित सुई कभी नही खोती है, वैसे ही भव्य ( सम्यग्दृष्टि ) मनुष्य मानसिक तनाव का अवश्य नाश कर देता है ( 10 ) । सम्यग्दर्शन की मुख्यता को समझाने के लिए यह कहा गया है : यद्यपि ज्ञान मनुष्य के लिए सार होता है, किन्तु सम्यग्दर्शन की प्राप्ति मनुष्य के लिए अधिक सार होती है ( 8, 9 ) । इसलिए जिनका सम्यग्दर्शन दृढ़ है, वे ही मनुष्य हैं; वे ही धन्य हैं; वे ही वीर हैं, तथा वे ही पंडित हैं ( 90 ) । पूर्ण तनाव मुक्तता में रुचि गुण है, xx ] [ अष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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