Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ 39 पढिएण वि किंकीरइ किंवा सुणिएण भावरहिएण । भावो कारणभूदो सायारणयारभूदाणं ॥ 40 भावं तिविहपयारं सुहासुहं सुदमेव वायव्वं ।। असुहं च अट्टरह सुहषम्म जिरणवरिवेहिं ॥ 41 सुद्ध सुद्धसहावं अप्पा अप्पम्मि तंच णायव्वं । इदि जिरणवरेहि भारिणयं जं सेयं तं समायरह ॥ . 42 ग्रह पुरण अप्पा णिच्छदि पुण्णाई करेदि गिरवसेसाई । तह वि ण पावदि सिद्धि संसारस्थो पुणो भरिणदो ॥ 43 बाहिरसंगच्चामो गिरिसरिदरिकंदराइ प्रावासो । सयलो . झागझयणो गिरस्थो भावरहियाणं ॥ 44 भंगसु इंबियसेणं भनसु मणमक्क पयत्तेण । मा जणरंजणकरणं बाहिरवयवेस तं कुणसु ॥ 16 ] . [पष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106