Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 71
________________ 1 सम्मत्तरयणभट्ठा [(सम्मत्त)-(रयरण)-(भट्ठ) 1/2 वि । जाणंता (जाण) वकृ 1/2 । बहुविहाई (बहुविह) 2/2 वि. । सस्थाई (सत्थ) 2/2 । आराहणाविरहिया [(आराहणा)-(विरह) भूकृ 5/1] । भमंति (भम) व 3/2 सक । तत्थेव [(तत्थ) + (एव)] तत्थ' (त) 7/1 सवि एव (अ)=ही . . 1. 'गमन' अर्थ वाली क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। 2. कभी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति __का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135) 2 सम्मत्तसलिलपबहो[ (सम्मत्त)-(सलिल)-(पवह) 1/1] | णिच्चं (अ)= नित्य । हियए (हियग्र) 7/1। पवट्टए (पवट्ट) व 3/1 अक । जस्स (ज) 6/1 स । कम्मं (कम्म) 1/1 । वालुयवरणं [(वालुय)-(वरण) 1/1] । बंधु (बंध) 1/1 अपभ्रश । च्चिय (अ)=निश्चय ही । गासए (णास) व 3/1 अक । तस्स (त) 6/1 स। . 3 जे (ज) 1/2 सवि । दंसणेसु (दंसग) 7/2 । भट्ठा (भट्ठ) 1/2 वि । गाणे (गगाण) 7/1 । चरित्तभद्वा । (चरित्त)-(भट्ट) 1/2 वि । य (अ)= तथा। एदे (एद) 1/2 सवि । भविभट्ठा [(भट्ठ) वि(विभट्ठ) 1/2 वि | । सेसं (सेम) 2/1 वि । पि (अ) = भी। जणं (जण) 2/1 । विणासंति (विरणास) व 3/2 सक ।। 3. कभी कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-136) 'दंसरण' सम्मान सूचक होने से यहाँ इसमें बहुवचन का प्रयोग है। 4 सम्मत्तानो (सम्मत्त)5/1 । गाणं (गाग्ग)1/1। णाणादो (णागा) 5/1। सम्वभावउवलती [(सव्व)-(भाव)-(उवलद्धि) 1/1] । उवलउपयत्थे 4. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135) 38 ] [ अष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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