Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 75
________________ तं (त) 2/1 मवि । अप्पा' (अप्प) 2/1 अपभ्रंश । सद्दहेह' (सद्दह) आज्ञा 2/2 सक । तिविहेण (क्रिविअ)-तीन प्रकार से । जेण (ज) 5/1 सवि । य (अ)= चूकि । लहेइ (लह) व 3/1 सक । मोक्खं (मोक्ख) 2/1 । तं (त) 1/1 मवि । जाणिज्जइ (जाण) व कर्म 3/1 सक । पयत्त ण (क्रिविन)= प्रयत्न पूर्वक । 1. 'श्रद्धा' के योग में द्वितीया का प्रयोग होता है। अथवा कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग हो जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 2. वर्तमान काल का प्रयोग उपदेश देने में उसी प्रकार होता है, जिस प्रकार विधि का । 16 अण्णाणं (अण्णारण) 2/1 । मिच्छन (मिच्छत्त) 2/1। वज्जहि (वज्ज) विधि 2/1 सक । पारणे (गाण) 7/1 । विसुद्धसम्मत्त [(विसुद्ध) वि-(सम्मत्त) 7/1] । अह (अ) = और । मोहं (मोह) 2/1। सारंभ (सारंभ) 2/1 वि । परिहर (परिहर) विधि 2/1 सक । धम्मे (धम्म) 7/1 । अहिंसाए (अहिंसा) 7/1 । 17 पाउण (पा) संकृ । णाणसलिलं [(गाण)-(सलिल) 2/1] । णिम्मलसुविसुद्धभावसंजुत्ता [(गिम्मल))-(सुविसुद्ध) वि-(भाव)(सजुत्त) 1/2 वि] । हुंति (हु) व 3/2 अक । सिवालयवासी [(सिवालय)-(वासि) 1/2 वि । तिहुवणचूडामणी [(तिहुवण)(चूडामणि) 1/1] । सिद्धा (मिद्ध) 1/2 । 18 गाणगुलेहि" [(णाण)-(गुण) 3/2] । विहीणा (विहीण) 1/2 वि । ण (अ) = नहीं। लहंते (लह) व 3/2 सक । ते (त) 1/2 सवि । सुइच्छियं [(सु) अ == भली प्रकार से-(इच्छ) भूक 2/1] । लाहं (लाह) 3. कभी कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-136) 42 ] [ अष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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