Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 82
________________ ( रुद्ध) 1 / 1 ] | सुहधम्मं [ ( सुह) वि - ( धम्म) 1 / 1 ] । जिणवरदेहि ( जिरणवरिद ) 3 / 21 । ( अ ) 41 सुद्धं (सुद्ध) 1 / 1 वि । सुद्धसहावं' [ ( सुद्ध) वि - ( सहाव ) 1 / 1 ] ( अप्प ) 2 / 1 अपभ्रंश । अप्पम्मि ( श्रप्प ) 7 / 1 च (प्र) = ही । नायव्वं (गा) विधिकृ 1 / 1 | इदि जिनवरेह (जिरणवर) 3 / 2 | भणियं ( भरण) भूकृ सवि । सेयं (सेय) 1 / 1 वि । तं (त) 2 / 1 विधि 2 / 2 सक | 1 । अप्पा तं (त) 1 / 1 सवि । = इस प्रकार । 1 / 1 । जं (ज) 1/1 सवि । समायरह ( समायर) 1. गुरण इत्यादि शब्द विकल्प से नपुंसक लिंग में और पुल्लिंग में प्रयुक्त किए जाते हैं यहाँ पु·, नपुंसक लिंग में प्रयुक्त हैं । ( हेम प्राकृत व्याकररण : 1-34 ) Jain Education International 2. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-137) 3. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-135) For Personal & Private Use Only 42 अह ( अ ) = यदि । पुण (न) = किन्तु । अप्पा (अप्प ) 2 / 1 अपभ्र ंश | च्छिवि [ ( ग ) + (इच्छदि ) ] ग ( प्र ) = नहीं इच्छदि ( इच्छ) व 3 / 1 सक । पुण्णाई (पुण्ण) 2 / 2 | करेदि (कर) व 3 / 1 सक । णिरवसेसाई (रिगरवसेस) 2 / 2 वि । तह वि ( अ ) = तो भी । रण (श्र ) = नहीं । पावदि (पाव) व 3 / 1 सक | सिद्धि (सिद्धि) 2 / 1 | संसारस्यो ( संसारत्थ) 1 / 1 वि । पुरणो (प्र) = ही । भणिदो ( भरण) भूकृ 1 / 1 । 43 बाहिरसंगच्या [ ( बाहिर) वि - ( संग ) - (च्चा ) 1 / 1 ] | गिरिसरिदरिकंदराइ [ ( गिरि) - (सरि) - ( दरि ) - (कंदरा ) 7 /1] । आवासो (प्रावास) 1 / 1। सयलो (सयल) 1 / 1 वि । कागज भयणो [ ( भारण) + (प्रज्झयण ) ] [ ( झाण) - ( प्रज्भयरण ) 1 / 1 ] । णिरत्यचो ( गिरत्थन) 1 / 1 वि । भावरहियाणं [ (भाव) - ( रहिय) 4 / 2 वि ] । | चयनिका ] [ 49 www.jainelibrary.org

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