Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
अप्पा (अप्प) 1/1 । अप्पम्मि (अप्प) 7/1। रओ (रअ) भूक 1/1 . अनि । स (त) 1/1 सवि । भावलिंगो [(भाव)-(लिंगि) 1/1 वि] ।
हवे (हव) व 3/1 अक । साहू (साहु) 1/1। 34 मत्ति (ममत्ति) 2/1 । परिवज्जामि (परिवज्ज) व 1/1 सक । णिम्म
मत्तिमुवद्विवो [(रिणम्मत्ति) + (उवट्ठिदो)] णिम्ममत्ति (रिणम्ममत्ति) 2/1 । उवडिवो (उवट्ठिद) भूकृ 1/1 अनि । आलंवणं (प्रालंबण) 1/1। च (अ) = ही । मे (अम्ह) 6/1 स । आवा (पाद) 1/1। अवसेसाई (अवसेम) 2/2 वि । वोसरे (वोसर) व 3/1 सक । 1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का
प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137)।
35 भावेह (भाव) अाज्ञा 2/2 सक । भावसुद्धं [(भाव)-(सुद्ध) 2/1 वि] ।
अप्पा (अप्प) 2/1 अपभ्रंश । सुविसुखणिम्मलं [(सु) =पूर्ण-(विसुद्ध) -(रिणम्मल) 2/1 वि] । चेव (अ) = निश्चय ही। लहु' (लहु) मूलशब्द वि 2/2 । चउगइ [(चउ)-(गइ)मूल शब्द 2/2] । चइऊण (चय→च अ) संकृ । जइ (अ) = यदि । इच्छह (इच्छ) व 2/2 सक ।सासयं (सासय) 2/1 वि सुक्खं (सुक्ख) 2/1। 2. पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया
जा सकता है । (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, , पृष्ठ, 517) 36. जो (ज) 1/1 सवि । जीवो (जीव) 1/1 । भावंतो (भाव) व 1/1।
जीवसहावं [(जीव)-(सहाव) 2/1] । सुभावसंजुत्तो [(सु) =श्रेष्ठ-: - (भाव)-(संजुत्त) 1/1 वि] । सो (त) 1/1 सवि । जरमरणविणासं
[(जर)-(मरगा)-(विग्गासं) 2/1] । कुणइ (कुण) व 3/1 सक । फुडं - (अ) = निश्चय ही । लहइ (लह) व 3/1 मक । रिणवाणं (रिणवाण)
2/1 | ..
चयनिका ] ...
[ 47
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106