Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ 33 देहादिसंगरहिनो माणकसाएहि सयलपरिचत्तो। . अप्पा अप्पम्मि रो स भावलिंगी हवे साहू ॥ 34 मत्ति परिवज्जामि णिम्ममत्तिमुवद्विदो। - प्रालंबरणं च मे प्रादा अवसेसाइं वोसरे ॥ 35 भावेह भावसुद्ध अप्पा सुविसुखणिम्मलं चेव । - लहु चउगइ चइऊरण जइ इच्छह सासयं सुक्खं ॥ 36 जो जीवो भावंतो जीवसहावं सुभावसंजुत्तो। __सो जरमरणविरणासं कुणइ फुड लहर रिणव्वाणं ॥ 37 जीवो जिणपणत्तो गाणसहानो.य चेयणासहिम्रो । सो जीवो गायव्वो कम्मक्खयकरणणिमित्तो॥ 38 अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेयणागुणमसदं । जारसमलिंगग्गहरणं जीवमरिणद्दिट्ठसंठाणं । 14 ] . .. . [ प्रष्टपाहुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106