Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 59
________________ 70 जो इच्छइ णिस्सरिदु संसारमहण्णवाउ रुहायो । ___कम्मिधरणाण डहणं सो झायइ अप्पयं सुद्ध॥ 71 सम्वे कसाय मोत्तु गारवमयरायदोसवामोहं । _____ लोयववहारविरदो अप्पा झायइ झारपत्थो ॥ 72 जं मया दिस्सदे रूवं तं ण जाणादि सव्वहा । ___ जाणगं दिस्सदे णं तं तम्हा जंपेमि केरण हं ॥ .73 जो सुत्तो ववहारे सो जोई जग्गए सकज्जम्मि । जो जग्गदि ववहारे सो सुत्तो प्रप्पणो कज्जे ॥ 74 इय जारिणऊरण जोई ववहारं चयइ सम्वहा सव्वं । झायइ परमप्पारणं जह भरिणयं जिरगरिदेहि ॥ । 75 तच्चरुई सम्मत्तं तच्चग्गहणं च हवइ सण्णाणं । . चारित्तं परिहारो पयंपियं जिणवारदेहि ॥ 76 जं जारिणऊरण जोई परिहरं कुणइ पुण्णपावाणं । .. तं चारित्तं भरिणयं प्रवियप्पं कम्मरहिएहि ॥ 26 ] [ अष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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