Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 90
________________ संकृ] । ते (त.) 1/2 सवि । जिणवराण (जिणवर) 6/2। मग्गे' (मग्ग) 7/1 । अणुलग्गा (अणुलग्ग) भूकृ 1/2 अनि । लहन्ति (लह) व 3/2 सक । गिब्वाणं (रिणव्वाण) 2/1। 1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135) 69 वर(अ)= अधिक अच्छा । वयतवेहि [(वय)-(तव) 3/2] । सग्गो (सग्ग) 1/1। मा (प्र)=नहीं। दुक्खं (दुक्ख) 1/1 । होउ (हो) विधि 3/1 अक। जिरह (रिणरम) 7/1 अपभ्रश । इयरेहिं (इयर) 3/2 वि. । छायातवठ्ठियाण' [(छाया)-(तव)-(ट्ठिय) 6/2] । पडिवालताण (पडिवाल) वक 6/2। गुरुमेयं [(गुरु) वि-(भेय) 1/1] । 2. अनुस्वार का लोप विकल्प से होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-29) 3. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 70 जो (ज) 1/1 सवि । इच्छइ' (इच्छ) व 3/1 सक । णिसरितु (रिणस्सर) हेकृ । संसारमहण्णवाउ [(संसार)-(महण्णव) 5/1] । रद्दाओ (रुद्द) 5/1 वि। कम्मिधणाण [(कम्म)+ (इंधणाण)] [(कम्म)-(इंधण) 6/2] [.म्हणं (डहण) 2/1 वि.। सो (त) 1/1 सवि । झायई (झा) व 3/1 सक । अप्पयं (अप्पय) 2/1। सुद्ध (सुद्ध) 2/1 वि। 4. 'इच्छा' अर्थ में हेकृ का प्रयोग होता है। ... 5. अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त अन्य स्वरान्त धातुओं में विकल्प से म (य) जोड़ने के पश्चात् प्रत्यय जोड़ा जाता है। 71 सम्वे (सव्व). 2/2 वि । कसाय (कसाय) मूलशब्द 2/2 । मोत्त (मोतु) संकृ अनि । गारवमयरायदोसवामोहं [(गारव)-(मय)-(राय) (दोस)-(वामोह). 2/1] । लोयववहारविरवो [(लोय)-(ववहार)चयनिका ] [ 57 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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