Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 78
________________ 26 उत्तममज्झिमगेहे [(उत्तम) वि-(मज्झिम) वि-(गेह) 7/1] । दारिद (दारिद्द) 7/1 । ईसरे (ईसर) 7/1 । णिरावेक्खा (रिणरावेक्खा) 1/1 वि। सम्पत्य (प्र) = प्रत्येक स्थान में । गिहिवपिडा [(गिहिद)-(पिंडा) 1/1] । पम्बन्जा (पव्वज्जा) 1/1। एरिसा (एरिसा) 1/1 वि । भगिया (भण) भूकृ 1/11 27 निम्लेहा (णिण्णेहा) 1/1 वि । गिल्लोहा (गिल्लोहा) 1/1 वि। निम्मोहा (रिणम्मोहा) 1/1 वि । णिक्कलुसा (णिक्कलुसा) 1/1 वि । णिग्मय (रिणब्भय) अपभ्रश 1/1 वि । रिणरासभावा [(णिरास) वि(भावा) 1/1] । पव्वज्जा (पव्वज्जा) 1/1 । एरिसा (एरिसा) 1/1 वि । मणिया (भरण) भूकृ 1/1। 28 भावो (भाव) 1/1 | हि (अ) = निस्संदेह । पढमलिगं [(पढम) वि (लिंग) 1/1] । (प्र) = नहीं । बव्वलिंगं [(दव्व)-(लिंग) 1/1] च (अ) = किन्तु । जाण (जाण) विधि 2/1 सक । परमत्थं (परमत्थ) 1/1। कारणभूदो [(कारण)-भूद भूक 1/1 अनि] । गुणदोसाणं [[गुण)-(दोस) 6/2] । जिणा (जिंण) 1/2 । बिति' (बू) व 3/2 सक । 1. प्राकृतमार्गोपदे शिका, पृष्ठ 152. 29 भावविसुधिणिमित्त [(भाव)-(विसुद्धि)-(णिमित्त) 1/1] । बाहिरगंधस्स [(बाहिर) वि-(गंथ) 6/1] । कोरए (कीरए) व कर्म 3/1 सक । चामो (चाय) 1/1 । बाहिरचाप्रो [(बाहिर) वि-(चाय) 1/1] । विहलो (विहल) 1/1 वि । अम्भंतरगंथजुत्तस्स [(अभंतर) वि-(गंथ)-(जुत्त) 6/1 वि] । 30. जाणहि (जाण) विधि 2/1 सक । भावं (भाव) 2/1 । पढम (प्र) = सर्व प्रथम कि (किं) 1/1 सवि । ते (तुम्ह) 4/1 स । लिंगेण (लिंग) 3/1 । भावरहिएण [(भाव)-(रह)भूकृ 3/1] । पंथिय (पंथिय) 8/11 चयनिका-] .. [45 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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