Book Title: Anuttaropapatik Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 114
________________ श्री अत्तनुरोपपातिकदशाङ्गसूत्रे कालगतं ज्ञात्वा परिनिर्वाणप्रत्यायिक-परलोकगमनहेतुकं कायोत्सर्ग कृतवन्तः । कायोत्सर्ग कृत्वा पात्रचीवराणि-पात्राणि-भिक्षापात्रादीनि, चीवराणि-यत्राणिसदोरकसुखयस्त्रिकाचोलपट्टकगाटिकारजाहरणादीनि धर्मोपकरणानि जगृहुः, गृहीत्वा च तथैव विपुलगिरितटादवतरन्ति, अवतीर्णाः यावत्-भगवत्समीपमागत्याऽत्रुवन् हे भगवन् ! इमानि तम्य परलोकातस्य जालेरनगारस्य आचारमाण्डानि धर्मोपकारणानि सन्ति । ततः 'भदन्त ! इति' हे भगवन् ! इति सविनयं भगवन्तं स्वाभिमुखीकृत्य भगवान् गौतमः यावत्-भगवन्तं पर्युपासीन एवं वक्ष्यमाणरीत्याऽवादी-- ____ एवं खलु-निश्चयेन हे देवानुप्रियाः युष्माकमन्तेवाली-शिष्य जालिनामा अनगारः प्रकृतिमद्रका स्वभावेनैवोपशान्तकपाय आसीत् । स खलु जालिग्नगारः कालमासे आयुपीऽवसानकाले कालं कृत्वा औदारिकगरीरं त्यक्त्वाक गतः? कोपपन्नः? कस्मिन् स्थाने जन्म प्राप्तः? भगवानाह -हे गौतम ! जानकर परलोकगमन-हेतुक कायोत्सर्ग किया, तदनन्तर जालिकुमार के पात्र-भिक्षापात्र आदि, वस्त्र - दोरासहित मुखवलिका, चोलपट्ट, चादर, रजोहरण आदि धपिकरण लेकर विपुलाचल पहाडले उत्तरे और भगवान महावीर स्वामी की सेवा में उपस्थित हुए, तथा चन्दन नमस्कार कर इस प्रकार बोले-हे भगवन् ! कालप्राप्त जालिकुमार अनगार के ये धौंपकरण हैं। इस के बाद 'हे सगवन् ! ' ऐसा सम्बोधन करके भगवान गौतमस्वामी श्रमण भगवान महावीर से अत्यन्त बिनय के साथ इस प्रकार पूछने लगे- हे भगवन् ! देवताओं द्वारा लेवित, भद्रप्रकृतिबाले, आपके सुशिष्य जालिकुमार अनगार साल करके कहां गये ? तथा कहा उत्पन्न हुए ? । પાત્ર–ભિક્ષાપાત્ર આદિ, વસ્ત્ર–દોરા સહિત સુખશ્વિક, લપટ્ટ, ચાદર, રજોહરણ આદિ ધર્મોપકરણ લઈને વિપુલાચલ પહાડથી ઉતરી ભગવાન મહાવીર સ્વામીની સેવામા ઉપસ્થિત થયા, અને વન્દન નમસ્કાર કરી આ પ્રમાણે છેલ્યા, હે ભગવન્! કાલપ્રાપ્ત જાલિકુમારના આ ધર્મોપકરણો છે. ત્યારબાદ હે ભગવન્એવું સ હન કરી ભગવાન ગૌતમ સ્વામી શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને અત્યન્ત-વિનય-સહિત આ પ્રમાણે પૂછવા લાગ્યા- હે ભગવન્! દેવતાઓ દ્વારા સેવિત ભદ્રપ્રકૃતિવાળા આપના સુશિષ્ય જેલિકુમાર અણગાર કાળ કરીને કયાં ગયા? અને કયાં ઉત્પન્ન થયા?

Loading...

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228