Book Title: Anuttaropapatik Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 196
________________ ११६ श्री अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रे नयरी होत्था, उप्पि पालायवडिसए विहरइ । तए णं अहं अण्णया कयाइ पुवाणुपुवीए चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव काकंदी नयरी जेणेव सहसंक्वणे उजाणे तेणेव उवागए, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिणिहत्ता संजमेणं जाव विहरामि, परिसा निग्गया, तहेव जाव पव्वइए जाव बिलमिव जाव आहारेइ, धण्णस्स णं अणगारस्स पायाणं सरीरवण्णओ सम्वो जाव उवसोभेमाणे२ चिटइ, से तेण?णं सेणिया! एवं बुच्चइ इमेसिं चोदसण्हं समणसाहस्सीणं धपणे अणगारे महादुक्क रकारए चेव महानिज्जराए चेव । तए णं से सेणिए राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमहं सोचा निसम्म हतुट समणं भगवं महा; वीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमसइ, बंदित्ता नमंसित्ता जेणेव धणे अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिन्ता धणं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीधपणे सि णं तुमं देवाणुप्पिया! सुपुण्णे सुकयत्थे सुकयलक्खणे, सुलद्धे णं देवाणुप्पिया! तव माणुस्सए जन्मजीवियफले-त्ति कटु वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव ससणे भगवं . महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए ॥ सू० ३९ ॥ छाया-तस्मिन् काले तस्मिन् समये राजगृहं नगरं, गुणशिलकं चैत्यं, श्रेणिको राजा । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरः

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