Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ १४८ १४८ ૧પ૦ ૧પ૧ ૧પ૧ ઉપર ૧૫૪ ૧પ૪ ૧પપ ८ यतुर्थ सूत्रमा अवतरराडा और यतुर्थ सूत्र । ८ हननछोटिशिष्ठ और ज्याराछोटिग्रिसे रहित साधुटा वर्शन। १० प्रश्चभ सूत्रछा सवतरा और प्रश्वभ सूत्र । ११ साधुठो भेषणीय आहार सहश मेषशीय वस्त्रपात्राहि भी गृहस्थसे ही यायना याहिये। १२ षष्ठ सूया सवतररा और षष्ठ सूत्र । १३ भुनिछो भात्राज्ञ होना चाहिये सिठा वर्शन । १४ सप्तभ सूयमा सवतररा और सतभ सूत्र। १५ श्रुतयारित्र ३प छस भार्गो आर्योने प्रवेहित डिया है। उस भार्ग पर स्थित होर जिस प्रकार छर्भ से उपलिप्त न हो वैसा उरना चाहिये। १६ अष्टभ सूयमा अवतररा और अष्टभ सूत्र। १७ हिरण्य-सुवर्णाधि तथा शम्घाहिलाभ ३वंऽध्य हैं। छन डाभों को याहनेवाले पु३षष्ठी हशा होती है उसखा वर्शन। १८ नवम सूत्रछा अवता और नवम सूत्र । १८ ज्ञाननेत्रयुज्त भुनिष्ठा वर्शन २० शभ सूचना भवता और शभ सूत्र । २१ साधुठो छाभभोगाशासे युड्त नहीं होना याहिये; ज्यों टि डाभभोगाशासे युज्त साधु जहभायी हो र लोभ और वैर अढानेवाला होता है। वह अपनेठो सभर सभॐता है, छष्ट-विनाश-आहिडारा से वह उथ्य स्वर से ३८न उरता है। २२ ग्यारहवां सूत्रमा अवता और ग्यारहवां सूत्र । २३ जात-अज्ञानी परतैर्थिाभभोगस्पृहाडी थिठित्सा प्राभलोगसेवनही उहते हैं; इसलिये वे हननाहि ठ्यिासे युज्त होते हैं। परन्तु अनगार मेसे नहीं होते हैं। देश सभाप्ति। ૧પ૬ ૧પ૯ ૧પ૯ ૧૬ર ૧૬૨ ૧૬૪ ૧૬૫ ॥छति प्रश्वभोटेशः॥ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨

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