Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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॥अथः तृतीयोटेशः॥
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१ द्वितीय श साथ तृतीय श ा सम्मन्धप्रतिपाहन। २ प्रथम सूचठा अवतरराश और प्रथम सूत्र। उ पति छो उथ्य साठी प्राप्ति से हर्ष नहीं डरना याहिये;
और न नीय हुलष्ठी प्रतिसे छोध ही उरना याहिये। ४ द्वितीय सूत्रठा अवतरा और द्वितीय सूत्र । ५ डिसी भी प्राशीका अहित नहीं रना चाहिये । प्राणियों में
सहित उरनेवालों डीजस्था डा वर्शन । ६ तृतीय सूठा अवतरश और तृतीय सूत्र। ७ उथ्यलामिभानी भनुष्य प्रशियों छा अहित हरडे
न्मान्तर में छोछ सन्धता आदि इस पार ससननिन्ति होता हुआ, और छोजेत-घरधनधान्य-स्त्री आहि परिग्रहमें आसत हो तप माठिी निन्दा रता हुमा विपरीत सुद्धिवाला होता है। ८ यतुर्थ सूचठा अवतररा और यतुर्थ सूत्र । ८ संयमियों उर्त्तव्य छा नि३पाया। १० प्रश्चभ सूचठा अवतरा और प्रश्वभ सूत्र । ११ ससंयभियों ठेवन स्व३पठा वर्शन । १२ छठे सूत्रमा अवतररा और छठा सूत्र । १३ मसंयमीठा अन्यायोपार्जित धन नष्ट हो जाता है, और
मुटुम्म डी यिन्ता से व्याहुल वह ससंयभी डार्याठार्थ हो
नहीं जानता हुआ विपरीतसुद्धियुज्त हो जाता है। १४ सातवें सूचठा अवतररारा और सातवाँ सूत्र ।। १५ सुजछो याहनेवाला भूढमति ससंयमी भनुष्य जही
भोगता है उस मातठो लगवान महावीर स्वाभीने स्वयं
प्रइपित ठ्यिा है-उस प्रहार सुधर्मा स्वाभी ला ज्थन। १६ आठवें सूत्रछा अवतरा और आठवाँ सूत्र।। १७ पश्या-तीर्थर गाधर माहि नराहि गतिछे भागी नहीं
होते हैं, जात-अज्ञानी छाव तो नराहि गतिभागी ही निरन्तर होते रहते हैं--सहा प्रतिपाहन और देशसभाप्ति।
॥ति तृतीयोटेशः॥
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શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨