Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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१८ दृशभ सूत्रा अवतरा और हशम सूत्र ।
२० हे शिष्य ! भिसलिये प्रोधाहि षायोंसे युक्त भव अनन्त हुः पाता है, इसलिये तुम आर्हतागम परिशीलन- नित सम्यग्ज्ञान से युक्त अतिविद्वान् होडर प्रोधाहि षायभनित सन्तापसे अपनेो जयाजो । उहैशसभाप्ति ।
॥ इति तृतीयोहेशः ॥
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१ तृतीय
शडे साथ यतुर्थ उशा सम्जन्धप्रतिपाहन, प्रथम सूत्रडा अवतरा और प्रथम सूत्र ।
२ भातापिता जाहि सभ्जन्धो या असंयमझे छोडर और संयम प्राप्तडर, शरीरडो प्रथम प्रव्रभ्याडा में साधारएा तपसे, जाहमें प्रनष्ट तपसे, और अन्तमें पण्डित भए द्वारा शरीरत्यागडी च्छासे युक्त हो मासार्द्धमास क्षपाहि तथोंसे पीडित-श पुरे ।
3 द्वितीय सूत्रा अवतरा और द्वितीय सूत्र । ४ उपशभट्ठा साश्रया र प्रर्भविहार में समर्थ, संयमाराधन में जेहरहित, भुवनपर्यन्त संयमाराधन में तत्थर और समिति जेवं सम्यग्ज्ञानाहि गुणों से युक्त हो डर मुनि सर्वा संयभराधनमें प्रयत्नयुक्त रहे ।
4 तृतीय सूत्रा अवतरा और तृतीय सूत्र ।
६ मोक्षगाभी वीरोंडा यह संयम३य मार्ग प्रठिनतापूर्व सेवनीय है ।
७ यतुर्थ सूत्रा अवतरा और यतुर्थ सूत्र ।
८ सन्तप्रान्त साहाराहिसे और अनशनाहिसे अपने शरीर मांस शोशितो सुजाओ । इस स्वशरीरशोषऽ भोक्षार्थी पुष तीर्थरोंने प्रर्भविहार डरने में समर्थ औौर श्रद्धेयवयन हा है । और भे ब्रह्मयर्य महाव्रतमें तत्पर होडर प्रर्भोपा क्षपा डरता है वह ली श्रद्धेयवयन है । ← प्रश्र्चम सूत्रा अवतरा और प्रश्र्चम सूत्र । १० साधु विषयोंसे अपनी इन्द्रियोंको हटा घर भी भयर्य में
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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