Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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स्थित हो डर ली और श्रद्धेयवयन हो डर भी यहि शाहि विषय लोगों में खासत होता है तो वह जाल अपने प्रर्भजन्धको डाटने में समर्थ नहीं होता ! वह जात भातापिता जाहि सम्जन्धोया असंयम सम्जन्धो नहीं छोड़ पाता ! आत्महितो नहीं भननेवाला उस जालझे भगवान् तीर्थंऽरडे उपदेश३प प्रवयना अथवा सभ्यत्त्व साल नहीं होता !
११ छठे सूत्रा अवतरा और छठा सूत्र ।
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सो पूर्वा में सभ्यस्तव नहीं मिला है और भविष्यत्प्रासमें ली भिसे सभ्यत्त्व नहीं मिलनेवाला है उसे वर्त्तमान में सभ्यस्तव हांसे मिले ? १३ सातवें सूत्रा अवतरा और सातवां सूत्र ।
१४ भे लोगविलाससे रहित होता है वही भवाभवाहि पार्थो प्रा सम्यग्ज्ञाता तत्त्वज्ञ आरम्भसे उपरत होता है। यह आरम्भसे उपरभा होना ही सभ्यत्त्व है । स आरम्लोपरभा से भुव घोर हुः जन5 प्रर्भजन्धो, वध और हुस्सह शारीरि5 परितापको नहीं पाता है । अथवा भिस जारम्भसे भुव घोर हु: जन प्रर्भजन्ध और वध तथा हुस्सह शारीरि5 मानसिङ पीरताथ हो पाता है । १५ आठवें सूत्रा अवतरा आठवां सूत्र । १६ हिरएयर४त भातापिता जाहिडा सम्जन्ध३य अथवा
प्राशातिपात३प जाह्य आास्त्रवो और विषयाभिलाष३प आन्तर स्त्रोतो रोड पर सिलोङमें मनुष्योंडे जीय मोक्षालिताषी हो सावधव्यापारडा परित्याग उरे । अथवा सिलो में मनुष्योंडे जीय जाह्य स्त्रोतो छिन्न र निष्ठुर्भहर्शी हो भवे ।
१७ नवभ सूत्रा अवतरा और नवम सूत्र । १८ ज्ञानावरणीयाहि प्रर्म अवश्यमेव स्व-स्वइन होते हैं-जेसा भनडर आर्हतागभभनित सम्यग्ज्ञानवान् मुनि जन्धारएा सावध व्यापारो छोड़ता है । १८ दृशभ सूत्रऽा अवतरएा और दृशभ सूत्र । २० हे शिष्य ! भे प्रो प्रर्भविहार डरनेमें उत्साहयुक्त, समितियुक्त, स्वहितमें उद्योगयुक्त अथवा सम्यग्ज्ञाना हियुत, सर्वा संयमाराधनमें सावधान, हेयो पाहेयडे
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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