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वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव-नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय तक होते हैं । २०५।
जैसे-सात-आठ जन, अथवा बहुत से सासादनसम्यग्दृष्टि जीव अपने गुणस्थान के काल में एक समय अवशेष रहने पर देवों में उत्पन्न हुए और द्वितीय समय में सबके सब मिथ्यात्व को प्राप्त हुए। इस प्रकार एक समय प्राप्त हो गया।
उक्त जीवों का उत्कृष्टकाल पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । २०६ ।
जैसे-सात-आठ जन, अथवा उत्कर्ष से पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र जीव, एक, दो अथवा तीन समय को आदि देकर उत्कर्ष से एक समय कम छह आवली प्रमाण सासादनकाल के अवशेष रहने पर वे सबके सब देवों में उत्पन्न हुए। पुनः वे सब क्रम से मिथ्यात्व को प्राप्त हुए। उसी समय में ही पूर्व के समान अन्य सासादनसम्यग्दृष्टि जीव देवों में उत्पन्न हुए। इस प्रकार निरन्तर नाना जीवों का आश्रय करके सासादनगुणस्थान का काल पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र और अपनी राशि से असंख्यातगुणा हो जाता है।
एक जीव की अपेक्षा उक्त जीवों का जघन्यकाल एक समय है । २०७ ।
जैसे-कोई एक सासादनसम्यगदृष्टि जीव अपने गुणस्थान के काल में एक समय अवशिष्ट रहने पर देवों में उत्पन्न हुआ और द्वितीय समय में ही मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। इस प्रकार से एक समय प्रमाणकाल उपलब्ध हो गया।
वैक्रियमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि का उत्कृष्टकाल एक समय कम छह आवली प्रमाण है । २०८ ।
___ अस्तु-जैसे कोई एक तिर्यंच अथवा उपशम सम्यक्त्व के काल में छह आवलियां अवशिष्ट रहने पर सासादनगुणस्थान को प्राप्त होकर और एक समय वहाँ रहकर ऋजुगति से देवों में उत्पन्न होकर एक समय कम छह आवली प्रमाणकाल तक सासादनगुणस्थान के साथ रहकर मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। .०७ आहारककाययोगी जीवों को कालस्थिति
___ आहारकायजोगीसु पमत्तसंजदा केवचिरं कालादो होति, गाणाजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमयं ।
-षट् खण्ड० १ । ५ । सू २०९ । पु ४ । पृष्ठ० ४३१ टोका-तं जहा–सत्तट्ठ जणा पमत्तसंजदा मणजोगेण पचिजोगेण वा अच्छिदा सगराए खीणाए आहारकायजोगिणो जादा। विदियसमए मुदा,
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